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Writer- अपूर्वा चौमाल

इधर न तो समारोह मनोज के शहर में था और न ही उस का नाम विजेताओं की सूची में था, इसलिए स्नेहा को विश्वास नहीं था कि वह आएगा. लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि वह मनोज के लिए सिर्फ एक आभासी मित्र ही नहीं, बल्कि एक पहेली और चुनौती भी है, इसलिए चाहे जो हो जाए, इस पहेली को सुल झाने और चुनौती पर विजय पाने को मनोज तो आएगा ही आएगा.

आखिर समारोह का दिन आ ही गया. मनोज नियत समय से कुछ पहले ही समारोह स्थल पर पहुंच गया, ताकि स्नेहा के साथ कुछ व्यक्तिगत समय गुजार सके. उसे बता सके कि वह उस की कल्पना के कितनी पास, कितनी दूर है. देख सके कि उस के कमैंट्स जैसी धार उस की बातों में भी है या नहीं.

समारोह स्थल चूंकि दूसरे शहर में था, इसलिए मनोज को वहां कोई नहीं जानता था. वह चुपचाप पीछे की कुरसी पर जा कर बैठ गया और वहां मौजूद हर महिला का गौर से अवलोकन करने लगा.

हालांकि सभ्य समाज में इसे अभद्रता ही कहा जाएगा, लेकिन दिल के हाथों मजबूर होना भी शायद इसी को कहा जाता होगा.

मनोज ने पूरे सभागार में निगाह घुमा ली. हौल ही में लगभग 20 महिलाएं मौजूद थीं, लेकिन किसी में भी उसे उस की वाली स्नेहा दिखाई नहीं दी या शायद वह उसे पहचान ही नहीं पा रहा था. उसे कोई आंख उत्सुकता से कहीं तलाशती हुई भी महसूस नहीं हई.

‘शायद स्नेहा को ले कर मैं कुछ अधिक ही सोच रहा हूं,’ विचार कर मनोज का उत्साह कुछ उतार पर आया, तभी कार्यक्रम के विधिवत शुरू होने

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