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आर्यन ने अपने एक वकील मित्र से सलाह ली. उस ने कहा, “यहां इस शहर में तुम दोनों की शादी में बहुत सी मुश्किलें आ सकती हैं. विवाह अधिनियम की धारा 4, अध्याय 4 के तहत कोई भी व्यक्ति इस शादी पर आपत्ति दर्ज करवा सकता है. बेहतर होगा कि तुम किसी और शहर में जा कर कोर्ट मैरिज करो. तुम देश के किसी भी शहर में ऐसा कर सकते हो, बशर्ते शादी की अर्जी देने के बाद कम से कम अगले तीस दिन तुम उस शहर में होना निश्चित करो.”

“लेकिन, हमारे केस से किसी तीसरे को क्या लेनादेना? कोई अन्य व्यक्ति आपत्ति दर्ज करवा सकता है...? वैसे भी हम बालिग हैं और अपने सारे दस्तावेज अर्जी के साथ नत्थी तो करेंगे ही,” आर्यन ने वकील से पूछा.

“ये कानूनी प्रक्रिया है, जिसे पूरा करना ही होता है. बेशक, तुम सही कह रहे हो, लेकिन आपत्ति दर्ज होने की स्थिति में जांच तो करवाई ही जाएगी ना? ख्वाहमख्वाह क्यों पचड़े में पड़ते हो. तुम ऐसा करो, दिल्ली चले जाओ. वहां कोई काम भी ढूंढ़ लो और वहीं बसने की तैयारी भी कर लो, क्योंकि यहां लखनऊ में तो तुम दोनों को कोई चैन से रहने नहीं देगा,” वकील ने आर्यन को सलाह दी और उसे यह सलाह पसंद भी आ गई.

वकील की सलाहनुसार दोनों ने फिलहाल कुछ समय के लिए शादी का इरादा और अपनेअपने समाज के नियमों का विरोध टाल दिया. कुछ दिन दोनों को शंकित निगाहों से देखने के बाद धीरेधीरे मामला शांत पड़ने लगा. इस बीच आर्यन नौकरी के सिलसिले में दिल्ली चला गया. वहां उस ने जिले के विवाह अधिकारी के सामने प्रस्तुत हो कर अपने और मीनल के विवाह के लिए प्रार्थनापत्र दे दिया. उन्हें तीस दिन का समय दिया गया. यदि इस बीच विवाह अधिनियम की धारा 4, अध्याय 4 के तहत किसी तरह की कोई आपत्ति दर्ज नहीं होती तो तीस दिन के पश्चात दो गवाहों की उपस्थिति में वे दोनों शादी कर सकते हैं.

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