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पहले उस ने सोचा कि वह इस वक्त डायरी को दराज में रख देता है, कल कहीं फेंक आएगा. फिर मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि आखिर नेत्रा ने अपनी डायरी में क्या लिखा होगा. अगर उस के विषय में भी नहीं तो अपने प्रेम प्रसंग के विषय में तो जरूर लिखा होगा. शायद इसीलिए वह अपनी डायरी को छिपा कर रखती थी.

यही सोच कर शिशिर ने डायरी को खोल कर पन्ने पलटने शुरू किए. वह भौचक्का रह गया. नेत्रा अपनी डायरी इस प्रकार लिखती थी मानो वह शिशिर से बात कर रही हो. ऐसा कोई पन्ना नहीं था, जिस पर नेत्रा ने शिशिर को संबोधित करते हुए अपने मन की बात न लिखी हो.

शिशिर अचंभे में था. उस ने एकएक पन्ने को विस्तारपूर्वक पढ़ना शुरू किया तो पाया कि नेत्रा रोज डायरी नहीं लिखती थी. 1 तारीख के बाद सीधे 7 तारीख का पन्ना था. नेत्रा ने छोटीछोटी बातों से ले कर हर बड़ी घटना का जिक्र अपनी डायरी में किया था.

‘शिशिर, आज मैं ने आप के लिए पनीर के कोफ्ते बनाए थे. चखने पर पता चला कि मैं नमक डालना भूल गई थी...’ जैसी खट्टीमीठी बातें पढ़ कर शिशिर कितनी ही देर तक हंसता रहा.

उस ने कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखा. साढ़े 11 बज चुके थे. न उसे नींद आ रही थी और न ही डायरी को छोड़ने का दिल कर रहा था. वह एक छोटा सा ब्रेक लेने के लिए उठ खड़ा हुआ. कौफी बना कर फिर वहीं वापस आ कर बैठ कर डायरी को दोबारा पढ़ने लगा.

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