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न जाने कितनी देर से शिशिर अपने घर के बाहर सीढि़यों पर बैठा अपने हाथ में पकड़ी हुई नेत्रा की डायरी को एकटक देखे जा रहा था. आज सुबह ही तो उस के नौकर को स्टोररूम की सफाई करते समय नेत्रा की डायरी मिली थी और उस ने उसे ला कर शिशिर के हाथ में थमा दिया था. वह तो उस डायरी को देख कर चौंक गया था क्योंकि उसे नेत्रा के साथ चली मात्र 3 वर्ष की अपनी शादी में कभी यह पता ही नहीं था कि वह डायरी भी लिखती थी. नेत्रा के बारे में सोच कर उस के चेहरे पर कड़वा सा नापसंदगी का भाव आ गया.

मुंबई की एक प्राइवेट कंपनी में अच्छी नौकरी लगने के बाद शिशिर के मातापिता ने उस की शादी अपनी पसंद से छोटे शहर की साधारण सी नेत्रा से करवा दी थी.

आधुनिक व स्मार्ट शिशिर के आगे सीधीसादी नेत्रा का व्यक्तित्व दब सा जाता था. शुरुआत में वह नेत्रा को अपने साथ मुंबई नहीं ले जाना चाहता था, परंतु अपने मातापिता व ससुराल वालों के दबाव के चलते उसे पत्नी को अपने साथ ले जाना पड़ा. कुछ समय साथ बिताने के बाद उन की गृहस्थी की गाड़ी ठीक ही चलने लगी थी. नेत्रा उस का बहुत खयाल रखती थी और धीरेधीरे उसे भी नेत्रा अच्छी लगने लगी थी. सुंदर तो वह थी ही और अब शहर के स्वच्छंद वातावरण में उस का संकोची स्वभाव भी कुछ खुलने लगा था. वह अधिक बात नहीं करती थी. बस, शिशिर की बातें सुन कर मुसकरा देती थी.

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