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वर्षगांठ वाला पन्ना पढ़ कर शिशिर नेत्रा के लिए थोड़ा नरम पड़ गया था, लेकिन घर में रोजरोज होने वाली कलह का व्याख्यान पढ़ कर उसे फिर से गुस्सा आने लगा. ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उस ने नेत्रा को अनगिनत दुख दिए हैं. नेत्रा ने अपनी डायरी में बड़ी ही चालाकी से शिशिर को खलनायक व खुद को पीडि़त अबला नारी साबित कर रखा था और उस की चालाकी की इंतहा तो देखो, उस ने अपने प्रेमी के विषय में एक शब्द भी नहीं लिखा था.

शिशिर लगभग पूरी डायरी पढ़ चुका था. उस ने 2-3 पन्नों के बाद उस घटना का वर्णन पाया जब उस ने नेत्रा को उस के प्रेमी के साथ रैस्तरां में देखा था.

‘आहा... मैं जिस पृष्ठ को ढूंढ़ रहा था, वह आखिरकार मिल ही गया,’ शिशिर ने खुशीखुशी पढ़ना शुरू किया.

‘शिशिर,

‘आज आप ने पहली बार मुझ पर हाथ उठाया, वह भी रैस्तरां में सब के सामने. मैं कितना रोईगिड़गिड़ाई, पर आप ने मेरी एक भी बात न सुनी और इन सब की वजह क्या थी? यह कि आप ने मुझे किसी पराए आदमी के साथ आधुनिक वस्त्र पहने रैस्तरां में कौफी पीते हुए देखा. आप ने इतने लोगों के सामने मुझे अपशब्द कहे, चरित्रहीन और पता नहीं क्याक्या. क्या आप को मुझ पर जरा भी विश्वास नहीं है?

‘तकरीबन 3 वर्षों के साथ के दौरान क्या आप मुझे इतना भी नहीं समझ पाए हैं? शिशिर, वह व्यक्ति मेरा प्रेमी नहीं है. वे विद्युत सर हैं, जो मुझे आप के अनुसार आधुनिकता के सांचे में ढलने में मेरी सहायता कर रहे हैं. आप को हमेशा मुझ से शिकायत रहती थी न, कि मैं आधुनिक कपड़े नहीं पहनती हूं, फर्राटेदार इंग्लिश नहीं बोलती हूं व मुझ में इतना भी सलीका नहीं है कि रैस्तरां में कांटेछुरी से किस प्रकार खाते हैं. आप की इन्हीं सब शिकायतों को दूर करने के लिए मैं ने विद्युत सर और उन की पत्नी दामिनी मैम की ग्रूमिंग क्लासेज में जाने का निर्णय लिया. आज जींसटौप पहन कर रैस्तरां में विद्युत सर के साथ कौफी पीना मेरा धोखा नहीं था, बल्कि मेरी परीक्षा थी.

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