फोन रख कर यतिन का मन हुआ कि अब कभी बेटे से मतलब न रखें पर पावनी की ही बात याद आ गई, वह मां थी, अपने बच्चों की एकएक नस जानती थी. वह हमेशा यही कहती थी कि ‘अब बच्चों से कोई उम्मीद मत रखा करो. वे अब बड़े हो चुके हैं. उन की अब अपनी घरगृहस्थी है. अब उन्हें हमारी नहीं, हमें ही उन की ज़रूरत है. हमें कुछ हो जाए तो उन पर अब कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा. उन्हें तब तक ही पेरैंट्स की ज़रूरत रहती है जब तक वे छोटे होते हैं और उन पर निर्भर करते हैं.’
उन्हें याद आ रहा था कि पावनी की ये बातें सुन कर उन्हें बुरा लगा था, कहा था, ‘ये तुम अपने बच्चों के बारे में मां हो कर भी कैसी बातें कर रही हो? अरे, बस वे व्यस्त हैं, हमें प्यार तो करते ही हैं न.’
पावनी ने भी हंसते हुए कहा था, ‘अगर तुम्हें गलतफहमियों में खुश होना अच्छा लगता है तो कोई बात नहीं. पर यह सच है कि बच्चों को अब हम से लगाव नहीं रहा. और यह एक हमारे घर की कहानी नहीं है, आज के समाज की, घरघर की यही बात है.’
‘बच्चों के सामने तो तुम उन से बहुत प्यार से बोलती हो. उन के बारे में पीछे से ये कैसी बातें करती हो?”
‘मां हूं. उन के चेहरे देखते ही उन पर ममता आती है, पर पीछे से अपने पति से अपने मन की बात तो कह ही सकती हूं न. दोनों को समझ गई हूं, बेटा हो या बेटी, दोनों स्वार्थी, लालची हैं, देख लेना. उन से कभी सेवा की उम्मीद मत करना.’
यतिन को ऐसा लगा जैसे पावनी अभी उन के सामने बैठी यही बातें कह रही हैं, उन्होंने झट से अपनी आंखें खोल दीं. फिर एक ठंडी सांस ली. अब कहां पावनी.
आरोही का फोन आया तो उन का मन तो हुआ कि न उठाएं, पर मन हो रहा था कोई बात भी कर ले. वह कुछ उदास स्वर में बोली, “पापा, सब हो गया?”
“हां.”
“मुझे बहुत अफ़सोस है कि मैं टाइम पर पहुंच नहीं पाई. आई एम सो सौरी, पापा.”
“कोई बात नहीं, उसे जाना था, चली गई,” एक आह के साथ उन के मुंह से निकला.
“जल्दी आऊंगी, पापा, टेक केयर. मेड कब से आ रही है? आप के पड़ोसियों ने आप का ध्यान रखा न?”
“हां,” कहते हुए उन का मन कसैला हो गया. मन तो हुआ कहें, तुम ने बच्चे हो कर क्या कर लिया जो गैरों के बारे में पूछ रहे हो, एक डांट लगाएं पर चुप रहे. पावनी की बात फिर याद आई, कहती थी, ‘बच्चों की बात बुरी भी लगे तो अपना मुंह और आंख बंद कर लो. बच्चों को टोकने, उन की गलतियां बताने का ज़माना नहीं रहा.’ पावनी अपने बच्चों को कितना जानती थी! अगले तीनचार दिन अनिल और विजय यतिन के साथ ही खड़े रहे. कोई आसपास से कभी आ जाता, कभी कोई फोन आ जाता. बच्चे एकदो बार हालचाल पूछ लेते. कौशल्या लौटी तो यह खबर सुन बहुत रोई. पावनी को उस ने बहुत याद किया. फिर यतिन से बोली, “साब, मैं सुबह आ कर सब काम कर दूंगी, शाम को आने को नई होगा. बच्चा लोग छोटा है, उन को भी देखना मंगता है न. आप भाजी ला कर रखना, दोनों टाइम का खाना मैं बना कर जाएगी.” वह करीब 35 साल की महाराष्ट्रियन नेक महिला थी. पावनी उसे बहुत पसंद करती थी. फिर उस ने पूछा, “साब, आप का बच्चा लोग नहीं आए?”
यतिन चुप रहे तो उस ने इतना कहा, “अब मैं घर साफ़ कर देती हूं. फिर कुछ खाना बना दूंगी. कपड़े भी धोने हैं?”
“नहीं, वौशिंग मशीन में धो लूंगा,” उन्होंने कह तो दिया पर चौंक गए. उन्होंने तो वौशिंग मशीन कभी चलाई ही नहीं थी. अब? कौशल्या ने कहा, “साब, मैं तीसरे माले पर वौशिंग मशीन चला कर कपड़े भी धोती है, मेरे को मशीन चलाना आता है, आप को बता दूं?”
“हां, बता दो.”
कौशल्या ने उन्हें समझा दिया कि मशीन कैसे चलेगी. अब उन्होंने अनिल और विजय को बता दिया कि खाना कौशल्या ही बना देगी, अब वे खाना न लाएं.