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कौशल्या जब चली गई तो वे चुपचाप बेड पर जा कर लेट गए... कैसे जिएंगें अकेले. बड़ा मुश्किल लग रहा है. अभी तो चार दिन ही हुए हैं, पता नहीं कितना जीना है. वे इस समय हर चीज़ से बेखबर अपने दुख में खोए रहे. अपने अंदर से बाहर आती गहरी सांसों की आवाज़ सुनते रहे. पत्नी के न रहने पर घर ऐसा हो जाता है, कभी सोचा नहीं था. इतना निर्जीव, इतना बेरौनक, चुप सा घर. उन्होंने अपना फोन उठाया और उस में अपनी और पावनी की फोटो देखते रहे, रोते रहे.

आखिरकार तेजस, दीवा बेटे इवान के साथ और आरोही उमंग व बेटी नायरा के साथ आ ही गए. सब आ कर रोने लगे. उन के गले लग कर तेजस और आरोही सिसकते रहे. यतिन शांत रहे, चुप रहे. कौशल्या ने आ कर रोज़ की तरह सब काम संभाल लिया तो आरोही और दीवा ने चैन की सांस ली कि जब तक रहेंगे, उन के सिर पर काम नहीं आएगा. सब का ध्यान इस बात पर था कि यतिन चुपचाप अपनेआप को अकेले रहने के लिए तैयार कर चुके हैं या नहीं. कहीं पिता की  जिम्मेदारी किसी के सिर तो नहीं आने वाली. जब देखा कि यतिन खुद को संभाल चुके हैं तो 3 दिनों में पूरी औपचारिकता निभा कर बच्चे चले गए. उस के बाद फोन पर संपर्क बना रहता. पावनी के सामने कौशल्या सिर्फ झाड़ूपोंछा और बरतन ही किया करती  थी, बाकी सब चीजें पावनी खुद किया करती  थीं.  अब यतिन ने उस से जब कहा, ''सुबह मेरे लिए थोड़ा नाश्ता, खाना रोज़ बना कर रख जाया करो तो उस ने थोड़ा संकोच के साथ कहा, “साब, खाना बनाने का पैसा आप मेरे को  तीन हजार दे देना, औरों से तो मैं चारपांच हज़ार लेती.”

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