बस अमन को मौका मिला गया. उस ने सारी बात उन्हें बता दी. मातापिता हैरानपरेशान उसे देखते रह गए. थोड़ी देर कमरे में सन्नाटा छाया रहा. फिर पिताजी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘ऐसा फैसला तुम कैसे ले सकते हो? अपने सगे मातापिता को ठुकरा कर आने वाली दूसरे धर्म वाली से विवाह? यह कैसे मुमकिन है? माना हम गरीब हैं पर हमारा भी कोई मानसम्मान है या नहीं?’’
मां तो आंसू भरी आंखों से अमन को देखती ही रह गईं. उन के इस योग्य बेटे ने कैसा बिच्छू सा डंक मार दिया था.
1 घंटे तक इस मामले पर बहस होती रही पर दोनों पक्ष अपनीअपनी बात पर अडिग रहे.
पिता गुस्से में उठ कर जाने लगे तो अमन भी उठ खड़ा हुआ. बोला, ‘‘मैं नहीं मानता आप के रूढि़वादी समाज को, आडंबर और पाखंडभरी परंपराओं को... मैं तो इतना जानता हूं कि एक दुखी, बेबस लड़की भरोसा कर के मेरी शरण में आई है. शरणागत की रक्षा करना मेरा फर्ज है,’’ कहता हुआ वह बार निकल गया.
अस्पताल पहुंच कर अमन ने अपने खास 2-3 मित्रों को बुला कर उन्हें बताया कि वह नीरा से शादी करने जा रहा है. शादी कोर्ट में होगी.
यह सुन कर सारे मित्र सकते में आ गए. उन्होंने भी अमन को समझाना चाहा तो वह गुस्से में बोला, ‘‘तुम सब ने मेरा साथ देना है बस. मैं उपदेश सुनने के मूड में नहीं हूं.’’
‘विनाश काले विपरीत बुद्धि,’ कह कर सब चुप हो गए.
अमन अस्पताल से मिलने वाले क्वार्टर के लिए आवेदन करने चला गया. इस समय उस के दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि नीरा उस की शरण में आई है. उसे उस की रक्षा करनी है.
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