“ओह हां, सौरी… दरअसल, तुम ने यह कहां बताया था कि रात के 8 बजेंगे? तुम्हें क्या पता नहीं है कि मैं 6 बजे तक घर आ जाता हूं?”
“आ जाते हो तो क्या हुआ, तुम्हें भी समझना चाहिए कि कालेज कोई मेरे हिसाब से तो नहीं चलेगा और न ही मैं सब को छोड़ कर आ जाऊंगी कि मेरे हसबैंड आ गए होंगे, मैं जा रही हूं. तुम भी न कमाल करते हो.”
“अरे बाबा, बोला न सौरी, मैं भूल गया था. चलो, अब खाना लगा लो,” कह कर प्रशांत डाइनिंग टेबल पर खाना लगने का इंतजार करने लगा.
चूंकि वह बहुत थक चुकी थी इसलिए शांतिपूर्वक खाना खा कर चुपचाप बैडरूम में जा कर सो गई. प्रशांत काफी देर तक लिविंगरूम में बैठ कर टीवी देखता रहा और फिर दूसरे रूम में जा कर सो गया.
अगले दिन सुबह जब वह चाय बना रही थी तो अचानक प्रशांत ने उसे आलिंगनबद्ध कर लिया और फिर अपने रात के व्यवहार के लिए माफी मांगने लगा. खैर, उसे भी लगा कि अब सब ठीक हो जाएगा पर पहले जम कर बुराभला कहना और फिर 2 दिन बाद ऐसे बिहेव करना मानों कुछ हुआ ही न हो, यह सब प्रशांत की आदत बन चुकी थी. उसे ले कर प्रशांत का इतना अधिक पजैसिव होना अब उसे ही अखरने लगा था.
जैसेजैसे समय बीतता जा रहा था हर दिन उसे प्रशांत का नया रूप देखने को मिलता. उस का व्यवहार अब पहले से अधिक उग्र और शक्की होता जा रहा था. अब आएदिन शराब के नशे में घर आते और सो जाते…प्रशांत के इस व्यवहार के कारण अब उन के रिलेशन में भी ठंडापन आता जा रहा था.
एक दिन अंतरंग क्षणों में उस ने प्रशांत से कहा,”प्रशांत, यह सब क्या है. 2 साल हो गए हमारी शादी को, तुम हर बार अगली बार न पीने का वादा करते हो पर सब भूल हो जाते हो…आजकल सब मुझ पर फैमिली बढ़ाने के लिए कहने लगे हैं पर मैं अपने बच्चे को उस के पिता का यह रूप और लड़ाईझगड़े वाला घर का माहौल कभी नहीं दिखाना चाहती. प्लीज, कुछ समझने की कोशिश तो करो.”
“अरे यार, हमेशा तो नहीं पीता न, कभीकभार ही तो ले लेता हूं दोस्तों और क्लाइंटों के साथ. क्या करूं आजकल ड्रिंक के बिना हर जश्न अधूरा रहता है. बैंक की नौकरी है तो लोन लेने वाले पार्टी देने को कहते रहते हैं.”
“देखो, पिछले कई बार से यह तुम्हारा फैशन तुम्हारा नशा बन चुका है. कितनी बार तुम इतनी चढ़ा कर आए हो कि तुम्हें अपना ही होश नहीं रहता.”
“ऐसा कुछ नहीं है. यह सिर्फ तुम्हारा वहम है,” कह कर प्रशांत औफिस चला गया.
“सुमी, तुम कहां चली गईं? रात गहराती जा रही है, चलो होटल लौट चलें.”
सुमित की आवाज से उस की तंद्रा लौटी. सच में वह तो अतीत में इतना डूब गई थी कि कब सूर्य की जगह चंद्रमा ने ले ली उसे ही पता नहीं चला. कैब बुक कर के दोनों होटल में वापस आ गए. सुमित को खाना और जरूरी दवाएं खिला कर उस ने सुलाया और खुद बालकनी में आ गई. बालकनी में खड़े हो कर वह तेजी से अपनी मंजिल को पूरा करते चंद्रमा को देखतेदेखते उसे फिर वे दिन याद आ गए जब शादी की सालगिरह से ठीक 1 दिन पहले रात को प्रशांत देर रात 2 बजे लौटे पर शराब के नशे में धुत्त लडखडाते हुए…ड्रिंक इतनी ज्यादा कर ली थी कि खुद के पास चाबी होने के बाद भी वे दसियों बार लगातार कौलबेल बजा रहे थे.
कौलबेल की आवाज से शादी की सालगिरह मनाने आए दूसरे कमरे में सोए उन के मातापिता भी उठ गए थे. खैर, मातापिता को किसी तरह समझाबुझा कर प्रशांत को कमरे में ले जा कर सुलाया पर उस रात आगे का अपना भविष्य सोच कर उस की आंखों की नींद पूरी तरह गायब हो गई थी. सुबह उठी तो नींद पूरी न हो पाने से उस का सिर बहुत भारी था पर कालेज में ऐग्जाम होने के कारण अवकाश ले पाना भी संभव नहीं था.
लंचटाइम में उस की उनींदी सी आंखें देख कर उस की कलीग निशा ने कहा,”बात क्या है, तू इतनी खोई, थकी और परेशान सी क्यों लग रही है?”
निशा उस की कलीग होने के साथसाथ बहुत अच्छी दोस्त भी थी. उसे प्रशांत के बारे में काफी कुछ पता भी था. उस के इतना कहते ही सुमी ने सारी दास्तान उसे कह सुनाई.
“अरे, तू इतनी परेशानी सह क्यों रही है? तुझे क्या लगता है तेरे इस प्रकार सहते रहने से समस्या सौल्व हो जाएगी. कुछ नहीं सही होने वाला बस, तू जरूर सूख कर कांटा हो जाएगी.”
“तो तू ही बता मैं क्या करूं? कितनी बार प्यार से, डांट से समझा चुकी हूं…हर बार अगली बार ठीक से रहने का वादा पर कुछ दिन बाद फिर वही ‘ढाक के तीन पात’ वाली स्थिति हो जाती है,”सुमी ने कहा.
“अल्टीमेटम… हां, प्रशांत को अल्टीमेटम दे कि या तो वह सुधरे और नहीं तो तू अपना अलग रास्ता बना लेगी.”
“अलग रास्ता से तेरा मतलब डाइवोर्स तो नहीं?” सुमी ने चौंकते हुए कहा.
“हां, सही समझी है तू. डायवोर्स ही है मेरा मतलब. जो बंधन घुटन और तनाव देने लगे तो उस से मुक्त हो जाना ही अच्छा होता है. केवल दिखावे के लिए ही तो है तुम दोनों का रिश्ता. 3 साल में जो इंसान नहीं सुधरा वह आगे क्या सुधरेगा…” निशा ने उसे समझाते हुए कहा.
“पागल हो गई है क्या? तलाक की बात तो मैं सोच भी नहीं सकती. मेरे ससुराल वाले और मम्मीपापा क्या कहेंगे. क्या बताऊंगी उन्हें कि क्यों तलाक की बात कर रही हूं. मैं उन्हें अपने डाइवोर्स की बात नहीं कह सकती. सारे नातेरिश्तेदार मुझे ही गलत कहेंगे क्योंकि समाज की नजरों में पुरुष हमेशा सही होता है.”
“तो बस, सारे जमाने और मातापिता की चिंता कर के अपनी पूरी जिंदगी तबाह कर ले और बस यों ही घुटती रह…अच्छा कमाती है तू, प्रशांत की दया की मुहताज नहीं है फिर क्यों इतना सोच रही है. पिछले 3 सालों के बारे में सोच कितना तनाव झेला है तू ने. शक करना, ड्रिंक कर के गालीगलौच करना सबकुछ तो कर रहा है पिछले 3 साल से तेरे साथ और तू फिर भी सहे जा रही है… सह.
“अब अगर अपनी आगे की जिंदगी भी तुझे ऐसे ही गुजारनी है तो तेरी मरजी. बस, एक बात समझ ले कि खुद से जुड़ा कोई फैसला तू तभी ले पाएगी जब तू खुद मजबूत होगी क्योंकि अगर तुझे ही अपने फैसले पर भरोसा नहीं है तो दूसरों को कैसे होगा.”
रात को वे सब बाहर खाना खाने भी गए पर निशा की बातें सुनने के बाद उस का मन बेहद उचाट हो गया था. रात को उस ने प्रशांत से कहा,”प्रशांत, अब तुम्हारा बिहेवियर मेरी बरदाश्त के बाहर होता जा रहा है. कल तुम ने मम्मीपापा तक का लिहाज तक नहीं किया. ऐसे कब तक चलेगा?”
“अरे यार, अब आज की रात तो इस तरह की बातें न करो,” कह कर उस ने उसे चुप करा दिया.
हमेशा की तरह सुबह उठ कर फिर वही मीठीमीठी बातें और आगे से कभी कुछ ऐसावैसा न करने के वादे. जिंदगी बस यों ही कट रही थी. हमेशा की तरह वह उस दिन भी बहल जाती यदि प्रशांत ने उस के ऊपर हाथ न उठाया होता.
उस दिन प्रशांत के एक दोस्त का बर्थडे था और फिर प्रशांत रात के 3 बजे लौटे थे और वही लगातार घंटी बजाना. प्रशांत का इंतजार करतेकरते वह अकसर सो जाया करती थी. लगातार बजती घंटी की आवाज से वह चौंक कर उठी और दरवाजे के पास जा कर बोली,”यह क्या तरीका है तुम्हारा घर लौट कर आने का? नहीं खोलूंगी मैं दरवाजा. जाओ वापस अपने उन्हीं दोस्तों के पास जिन के साथ तुम अभी तक मौजमस्ती कर रहे थे.”
“दरवाजा खोलती है कि नहीं…बेशर्म कहीं की, पता नहीं दिनभर किस के साथ क्या करती है. छोड़ो यह नौकरीवौकरी… मुझे नहीं पसंद यह सब. खोल दरवाजा खोल,” कह कर प्रशांत जोरजोर से दरवाजा पीटने लगे थे.
‘अङोसपङोसस में रहने वाले सभी अपनेअपने घरों से बाहर आ जाएंगे,’ यह सोच कर उस ने आगे कुछ नहीं कहा और जल्दी से दरवाजा खोल कर बड़ी मुश्किल से प्रशांत को किसी तरह अंदर किया और दरवाजा बंद कर के गुस्से से कहा,”शर्म नहीं आती तुम्हें इस तरह हंगामा करते हुए.”
“अगर तुम शांति से दरवाजा खोल देतीं तो कुछ नहीं होता. शर्म मुझे नहीं तम्हें आनी चाहिए. बेवकूफ कहीं की,” बेशर्मी से प्रशांत ने कहा और क्रोध से एक थप्पड़ उस की तरफ बढ़ाया ही था कि उस ने बीच में ही उस का हाथ रोकते हुए कहा,
“प्रशांत, अभी तुम होश में नहीं हो. जा कर चुपचाप सो जाओ. सुबह बात करते हैं,” कह कर वह प्रशांत को वहीं छोड़ कर सोने चली गई.
उस के बाद तो उस की आंखों से नींद ही गायब हो गई…वह सोचने लगी कि क्यों और किस के लिए सह रही है वह यह सब? क्या जिंदगीभर यही सहना उस की नियति है…नहीं, अब बस अब और नहीं. अभी तक तो मानसिक हिंसा ही सही थी पर अब तो शारीरिक भी शुरू हो गई है और धीरेधीरे यह विकराल रूप ले कर उस की पूरी जिंदगी को ही तबाह कर देगी. उस के मातापिता ने उसे इसीलिए आत्मनिर्भर बनाया था कि भविष्य में किसी फैसले को लेने से पहले उसे सोचना न पड़े. बस, उसी पल उस ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया.
अगले दिन सुबह प्रशांत के उठने से पहले ही प्रशांत के नाम घर छोड़ने का नोट छोड़ कर वह अपनी सहेली निशा के घर चली गई. निशा बैचलर थी और उस के घर के पास ही एक फ्लैट ले कर रहती थी. उसे देखते ही उस ने कहा,”जो फैसला तुम ने आज लिया है वह तुझे बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था. देख, यह जिंदगी खुश हो कर गुजारने के लिए मिली है नकि रोरो कर जीने के लिए. अब तू यहां आराम से जब तक चाहे रह सकती है.”
कुछ दिनों बाद उस ने निशा की ही सोसाइटी में एक फ्लैट किराए पर ले कर अपनी छोटी सी गृहस्थी बसा ली थी. इस बीच प्रशांत ने भी उस से कोई संपर्क नहीं किया.
6 माह बाद एक दिन प्रशांत को फोन आया,”अब क्या वहीं बनी रहोगी? आना नहीं है क्या? यह सब क्या तमाशा लगा रखा है…” प्रशांत के तेवर देख कर उसे क्रोध आ गया,”तमाशा मैं ने लगा रखा है कि तुम ने? हर दूसरे दिन चढ़ा लेना. फिर मारपीट करना और अगले दिन फिर शरीफ बन जाना, यह कहां की शराफत है? मैं अब और नहीं झेल सकती, मेरी तरफ से तुम आजाद हो.”
अपना अपमान होते देख प्रशांत का पौरुष उजागर हो गया और गुस्से से उस ने फोन काट दिया. इस के बाद आपसी सहमति से उस ने तलाक ले कर इस अनचाहे बंधन से मुक्त होने के लिए कोर्ट में डाइवोर्स के लिए अरजी लगा दी.