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तलाक को टेबू माने जाने वाले इस समाज में सुमी का यह फैसला किसी के गले नहीं उतर रहा था पर सुमी ने सब से कहा, "4 साल से घुटन और तनाव को झेल कर मैं मानसिक रूप से बहुत कमजोर हो गई हूं और अब मैं अपनी इस खूबसूरत जिंदगी को ढोना नहीं बल्कि जीभर के जीना चाहती हूं और उस के लिए मुझे इस बंधन से आजाद होना होगा.”

चूंकि वह आत्मनिर्भर थी, अच्छा कमाती भी थी इसलीए उस के इस निर्णय से किसी पर कोई विशेष फर्क भी नहीं पड़ा. विचारों का प्रवाह इतना तीव्र था कि सोचतेसोचते वह कब बालकनी से आ कर बैड पर लेट कर गहरी नींद में चली गई उसे कुछ पता नहीं चला.

अचानक सुमित की आवाज उस के कानों में पड़ी, “सुमी, तुम अभी भी सोई हो क्या?”

“नहीं, मैं अभी चाय मंगवाती हूं,” वह हड़बड़ा कर उठी और फोन पर चाय के लिए रैस्टोरेंट का नंबर डायल करने लगी. वह फिर बालकनी में आ कर बादलों की ओट में से अपनी छठा बिखेरते सूर्य को देखने लगी. बस यों ही उस के जीवन के अंधियारे की ओट में से निकल कर सुमित उस की जिंदगी में सूरज बन कर आए थे.

प्रशांत से डाइवोर्स लिए अब उसे 6 साल हो गए थे. पिताजी के रिटायर होने के बाद मांपापा भी अब उस के साथ ही रहने लगे थे. यों तो जिंदगी अपने ढर्रे पर चल रही थी पर अकसर मांपापा फिर से शादी की बात करने लगते तो वह चिढ़ जाती और कहती,"मां, अभी हम तीनों कितने सुख से रह रहे हैं. मैं अब कोई बंधन नहीं चाहती.”

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