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लेखक- मिर्जा हफीज बेग

मुझ तक तो बस एक  आवाज पहुंच  रही है. इसी आवाज के मोहपाश में बंधी मैं उस के पीछेपीछे चली जा रही हूं. कहां जा रही हूं? क्या पता. वह कहां जा रहा है? क्या पता. बस, इतना पता है कि कितने हरेभरे मैदान, नदियां, पहाड़, इन भागते कदमों के नीचे से गुजरते चले आ रहे हैं. अचानक एक ठोकर लगती है. आह, मैं गिरी, मैं गिरी, कोई बचाओ मुझे.

ओफ्फ...नहींनहीं, सब ठीक है. मैं बस के अंदर ही हूं. सिर्फ एक तीखा मोड़ था, जिस के कारण मुझे झटका लगा था.आखिर यह है कौन? क्या कोई ऐक्टर है? क्यों न इस से इस के ही बारे में कुछ उगलवाया जाए. अरे हां, यह मुझे सूझा क्यों नहीं? इस की पर्सनैलिटी, इस का मैनरिजम तो बिलकुल एक्टरों जैसा है. जरूर यह एक्टर ही है. क्या मैं ने इसे कभी देखा है? किसी टीवी सीरियल में या किसी फिल्म में? कुछ जानापहचाना सा तो जरूर है. कुछ याद क्यों नहीं आता?

‘‘एक्स्क्यूज मी, क्या आप यहीं के रहने वाले हैं?’’ मैं ने बात का सिलसिला चलाने की कोशिश की. मेरी आशा के विपरीत वह चुप रहा. असल में तो उस ने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी. सच में बहुत एटिट्यूड दिखा रहा है. मैं ने उसे हाथ से टोहका मारते हुए कहा, ‘‘एक्स्क्यूज मी?’’

‘‘जी, आप ने मुझ से कुछ कहा?’’ उस ने बिना मेरी ओर देखे कहा. जरा देखो तो इस का एटिट्यूड? क्या मैं खिड़की से बात कर रही हूं?‘‘जी,’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं ने पूछा आप यहीं के रहने वाले हैं क्या?’’

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