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63वें जन्मदिन पर अगर 18 साल की उम्र का पहला प्यार फेसबुक पर ढूंढ़ कर इतनी उम्र बीत जाने के बाद अचानक फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दे तो किसे हैरानी नहीं होगी। अपने लैपटौप पर माद्री एकटक अभिमन्यु का नाम देख रही थी। अभिवही है न... प्रोफाइल देखी तो समय के साथ आए कई बदलावों के बावजूद आसानी से पहचान लिया। यह चेहरा कौन सा स्मृतियों से कभी अलग हुआ था। जेहन में कुंडली मार कर तो बैठा रहा हमेशा। रिक्वैस्ट ऐक्सेप्ट करते ही मन सालों पहले के सफर पर उड़ चला। अभिमन्यु ने इतने में ही मैसेंजर पर मैसेज भेज दिया, “कैसी हो माद्री?”

ठीक हूं। कहां हो?”“पूना... और तुम?”“मुंबई।”“यह मेरा मोबाइल नंबर हैबात करोगी?”“क्यों नहींतुम कहां खो गए थेअभिमैं ने तुम्हें कितना ढूंढ़ा। तुम्हारा कभी कुछ पता ही नहीं चला।”“अभी दुकान पर हूंशाम को फोन करता हूं।अभी मेरा बेटा विराज मेरे साथ ही दुकान पर बैठा हुआ हैउस के सामने बात नहीं कर पाऊंगा।

डरते हो अब भी?”“हांडरना तो पड़ता ही हैसमाज के आज भी कुछ नियम हैंतब भी थेहमेशा रहेंगे।”“तुम्हारे घर में कौनकौन हैं?”“पत्नी नीताबेटा विराजउस की पत्नी मधु और 2 पोतेपोती मानन और तनिका। तुम्हारे घर में कौनकौन हैं?”

पति पुष्कर अब रिटायर हो चुके हैं। बेटा अंकित अपने परिवार के साथ कनाडा में रहता है। घर में अब हम दोनों ही हैं। मैं भी टीचर रहीअब तो रिटायर हो चुकी हूं।”“ठीक हैशाम को फोन करूंगा।”“अरेसुनोजन्मदिन मुबारक हो।"

तुम्हें याद है अब तक?”“तुम्हें भूला ही कब था?”माद्री के दिल पर ये शब्द जैसे शीतल फुहार से बरसे। मैं इसे याद रही। यह भी मुझे नहीं भूला था। ओहहम क्यों जुदा हुए...काश...लैपटौप बंद कर माद्री अजीब सी मनोदशा में उठी और बालकनी में रखी चेयर पर आंखें बंद कर बैठ गईं। हैरान थींयह क्या हो गयाअभि यों अचानक कैसे मिल गया। ऐसे भी होता है क्याजिसे ढूंढ़तेढूंढ़ते जीवन निकल गयाजिस का कभी कुछ सुराग न मिलावह यों सामने आ गया। वह भी जीवन के इस मोड़ पर। इस अवस्था में जब कोई ख्वाहिश शेष न रही।

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