इतने में पुष्कर के आने की आहट से माद्री ने आंखें खोलीं। पुष्कर ने उसे इतना खोए हुए देख कर पूछा, “बड़ी चिंता में लग रही हो? तबीयत तो ठीक है न?”माद्री ने कभी पुष्कर से कुछ नहीं छिपाया था, आज भी उन्हें बैठने का इशारा करते हुए कहा, “सुनो, बताओ आज फेसबुक पर कौन मिला?”
पुष्कर हंसे, “पहले यह साफ करो, मिली या मिला?”“मिला।”“कोई पुराना स्टूडैंट?”“नहीं।”“तुम्हीं बताओ।”“अभिमन्यु…”पुष्कर ने शांत स्वर में कहा, “अच्छा, कहां है आजकल?”“पूना,” माद्री के चेहरे की रौनक अभिमन्यु के नाम से कितना बढ़ गई, यह पुष्कर ने देखा। बहुत सालों बाद उस के स्वर में यह खनक थी। वे हैरान से माद्री का चेहरा देखते रहे। वे वहां से इस समय हट जाना चाहते थे, पता नहीं क्यों… पूछा, “चाय पीओगी? बना कर लाऊं?”“हां…”
पुष्कर चाय बनाने किचन में चले गए। उन्हें इस समय अपने मन को समझाने के लिए कुछ पल चाहिए थे, यही तो कर रहे हैं वे सालों से। माद्री के साथ सामंजस्य बैठातेबैठाते वे मन ही मन थकने लगते हैं पर माद्री को खुश देखने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं, कुछ भी। अब भी उन्होंने चाय बनाते हुए अपने से ही मन ही मन बात की। अच्छा लगा होगा माद्री को जब अभिमन्यु ने उसे आज उस के जन्मदिन पर उस से संपर्क किया। किसे अच्छा नहीं लगेगा। उन्हें कोई ऐसे ढूंढ़ता तो वे भी तो खुश होते। यह अलग बात है कि माद्री के सिवा उन के जीवन में कभी कोई और लड़की आई ही नहीं।
माद्री से विवाह के बाद वे पूरी तरह से घरपरिवार को समर्पित इंसान रहे। माद्री ने उन्हें जब अभिमन्यु के बारे में बताया तो भी उन्होंने उस के असफल प्रेम से सहानुभूति ही हुई। वे हमेशा से बहुत सहृदय, शांत, गंभीर इंसान थे। माद्री की हर सुविधा का उन्होंने हमेशा बहुत ध्यान रखा था पर माद्री के दिल का एक कोना हमेशा अभिमन्यु के लिए छटपटाता ही रहा।
“लो, चाय पीयो,”पुष्कर की आवाज से माद्री भी वर्तमान में लौटी।“क्या सोच रही हो?”माद्री ने मुसकराते हुए कहा, “आज का जन्मदिन तो अभिमन्यु ने स्पैशल बना दिया, चलो, अब बाहर चल कर बढ़िया डिनर करते हैं,” माद्री ने हमेशा ही पुष्कर से साफसाफ मन की बात की थी, बिना किसी लागलपेट के। वह आज क्यों खुश थीं, यह भी माद्री ने सहर्ष स्वीकार किया। कनाडा से अंकित, उस की पत्नी स्वरा और पोती फ्रेया ने उसे फोन पर विश कर ही दिया था। डिनर करने के लिए आज पुष्कर ने माद्री की पसंद का रेस्तरां बुक किया था। वह तैयार हो कर जैसे ही पर्स उठाने लगी, अभिमन्यु का फोन आया। पुष्कर तैयार हो कर सोफे पर बैठे थे। माद्री “अभिमन्यु का फोन है,”कहते हुए वापस अंदर बैडरूम में चली गई। दोनों ने सालों बाद एकदूसरे की आवाज सुनी, उम्र के अच्छेखासे अंतराल के बाद भी दोनों के मन में जो भाव थे, दोनों महसूस कर रहे थे, जैसे कुछ कहने की जरूरत ही नहीं थी। दूर बैठे दोनों एकदूसरे का मन पढ़ रहे थे। दोनों ने आधे घंटे बात की, तय हुआ, अब बातें होती ही रहेंगी।
पुष्कर इस दौरान चुप, गंभीर बैठे रहे थे। माद्री के स्वभाव में धैर्य, स्थिरता नहीं थी। उन्हें गुस्सा भी जल्दी आता, यह वे भी समझ गए थे। माद्री बिना आगापीछा सोचे फैसले लेने में भी जल्दबाजी करती थी। इस आदत के चलते उन से ज्यादा दिन कोई जुड़ा न रह पाता, पड़ोसी, रिश्तेदार अगर मतलब रखते तो सिर्फ पुष्कर के स्वभाव के कारण।