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‘‘याद से अपनी दवाइयां ले जाना,’’ शांता के कहने पर श्रीकांत के मन में एक टीस उठी. बीमारी भी इसी के स्वभाव के कारण लगी और अब उच्च रक्तचाप की दवाईर् लेने की याद भी यही दिलाती है.

बेंगलुरु के सदा सुहावने मौसम के बारे में श्रीकांत ने सुन रखा था. शहर में पहुंच कर उस मौसम का आनंद लेना उसे और भी अच्छा लग रहा था. किसी अन्य मैट्रो शहर की भांति चौड़ी सड़कें, फ्लाईओवर, और अब तो मैट्रो का भी काम चल रहा था. लेकिन भीड़ हर जगह हो गई है. यहां भी कितना ट्रैफिक, गाडि़यों का कितना धुआं है, सोचता हुआ वह अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच गया.

सारा दिन दफ्तर में काम निबटाने के बाद शाम को वह व्हाइटफील्ड मौल में कुछ देर तरोताजा होने चला गया. इस मौल में अकसर कोई न कोई मेला आयोजित होता रहता है, ऐसा दफ्तर के सहकर्मियों ने बताया था. आज भी मौल के प्रवेशद्वार पर जो लंबाचौड़ा अहाता है वहां गोल्फ की नकली पिच बिछा कर खेल चल रहा था. श्रीकांत को कुछ अच्छे पल बिताने के अवसर कम मिलते थे. वह भी वहां खेलने के इरादे से चला गया. अपना नाम दर्ज करवा कर जब वह काउंटर पर गोल्फस्टिक लेने पहुंचा तो सामने सारिका को गोल्फस्टिक वापस रखते देख चौंक गया. आंखों के साथसाथ मुंह भी खुला रह गया.

‘‘तुम? यहां?’’ अटकते हुए उस के मुंह से अस्फुटित शब्द निकले. सारिका भी अचानक श्रीकांत को यहां देख अचंभित थी. शाम ढल चुकी थी. श्रीकांत पहले ही अपने दफ्तर का काम निबटा कर फ्री हो चुका था. सारिका भी खाली हो गई. दोनों उसी मौल के तीसरे माले पर इटैलियन क्विजीन खाने कैलिफोर्निया पिज्जा किचन रैस्तरां की ओर चल दिए. वहां सारिका ने चिकन फहीता पिज्जा और इटैलियन सोडा मंगवाया. सारिका ने जिस अंदाज और आत्मविश्वास से और्डर किया, उस से श्रीकांत समझ गया कि सारिका का ऐसी महंगी जगहों पर आनाजाना आम होता होगा.

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