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‘ऐनी को कुछ नहीं हुआ, उस की बड़ी बहन गंभीर रूप से बीमार है.‘

‘तो उस में ऐनी क्या करेगी!’ यह रोष से भरा चीखता हुआ स्वर मेरा था. ऐनी पर होने वाली नियमित बातचीत में यह मेरी पहली भागीदारी थी.

‘चिल्लाते क्यों हो यार, मैं तो खबर दे रहा हूं. दिल्ली जाने का निर्णय भी ऐनी का ही है. कोई क्या कर सकता है,’ प्रो. शर्मा ने नाराजगी से कहा.

मैं थोड़ा संयत हुआ; पूछा, ‘हुआ क्या है?’

प्रो. शर्मा बोले, ‘ऐनी की बहन की दोनों किडनी फेल हो गई हैं, 2 छोटे बच्चे हैं. ऐनी ने किडनी देने का निर्णय  लिया है. मैचिंग हो गई है. 2 दिनों बाद औपरेशन हो जाएगा.’ मैं अवाक रह गया. अचानक ही मैं कांपते कदमों से उठ कर बाहर की तरफ जाने लगा. चर्चा जारी थी- कोई कह रहा था कि किडनी देने की क्या जरूरत है. किसी ने कहा कि आजकल तो ट्रांसप्लांट बड़ा आसान है तो किसी ने कहा, ‘ग्रेट ऐनी.’ कोई बोला कि कभीकभी रिश्ते भी मजबूरी में डाल देते हैं. ऐनी की उम्र ही क्या है. प्रो. शर्मा बोले, ‘बुद्धिमान तो मूर्खता से बच जाते है, अबोध नहीं. जहां तक ऐनी की बात है, शी इज़ परफैक्ट पीस औफ़ फुलिशनैस.   दरवाजे से निकलतेनिकलते मैं बुदबुदाया था, ‘मैं जानता हूं ऐनी को, वह ऐसी ही है अनकैलकुलेटेड.’

दो दिन कपूर की तरह धुआं हो गए. खबर आई, ऐनी का औपरेशन सक्सैस नहीं रहा. वह गंभीर है. उसे वैंटिलेटर पर रखा गया है. अगले ही घंटे मैं ट्रेन में था. पहली बार मैं आंखें बंद कर किसी को देख रहा था. निश्चित ही ऐनी को. उस की तसवीर खुली आंखों से कहीं ज्यादा साफ थी. मैं उस के उन सवालों को याद कर रहा था जो उसे हंसी का पात्र बना देते थे. कालेज के पिछले 4 साल ऐनी के भोलेभाले सवालों पर सवार हो कर उड़ गए थे. उस की छोटीछोटी बातों को याद कर मैं मुसकरा रहा था. अचानक ही मेरी आंखें भीग आईं...‘ऐनी को कुछ होगा तो नहीं?’ ऐनी मेरे लिए फिर एक सवाल थी जिस का मेरे पास कोई भी जवाब न था.

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