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ऐनी !

यही नाम था उस का. जब से वह कालेज में आई थी, एक प्रोफैसर के तौर पर मैं ने अपनेआप को ज्यादा व्यवस्थित पाया था. उस ने कब मेरे दिल को छू लिया था... याद नहीं. मेरे लिए वह एक रटारटाया समीकरण थी...प्यारी, हंसती, खिलखिलाती...इज इक्वल टू...ऐनी.

ऐनी कौन थी?

ऐनी एक दक्षिण भारतीय लड़की थी. कुछ दूसरी लड़कियों की तरह ही अबोध, किंतु नादानी में विलक्षण. बिंदास भी. साउथ इंडियन टच उस के लहज़े को और भी आकर्षक बना देता था. ऐनी कब क्या पूछेगी, खुद उसे भी नहीं मालूम होता था. वह अचानक इस तरह प्रश्न करती कि प्रोफैसरों के निर्विकार चेहरे भी खिलखिला उठते थे. उस के प्रश्न बेलगाम थे. कहना न होगा कि नादानी की अबोध पुनरावृत्तियां उस की पहचान थीं. मैं और मेरे साथी प्रोफैसर उस के औचित्यहीन सवालों को उस का आत्मविश्वास कहते थे, जो उस में कूटकूट कर भरा था. जिस के प्रदर्शन का एक ही जरिया था उस की भोलीभाली हरकतें. वह स्टाफरूम में चर्चा का स्थायी विषय थी.

ऐनी ने अपनी पहली छाप तब छोड़ी थी जब प्रो. शर्मा छुट्टी पर जा रहे थे. मिसेज शर्मा पूरे पेट से थीं. कालेज में किसी स्टूडैंट नें नहीं पूछा सिवा ऐनी के. ‘सर, मैडम का अंतिम समय चल रहा है?’ सब हंस दिए थे. शर्मा जी बोले, ‘ऐनी, अंतिम नहीं, पूरा समय चल रहा है.’

ऐनी कुछ ऐसी ही थी...प्यारी...हंसती...खिलखिलाती...

प्रिंसिपल मेहता को पितृशोक हुआ. ऐनी जिद कर मेरे साथ उन के घर पहुंच गई थी. ‘सर, आप का पिताजी मर गया, भोत दुख हुआ,’ एनी ने कहा था. मैं घबरा गया, उसे रोक कर बाहर लाया था. मैं ने समझाया, ‘देखो ऐनी, तुम कुछ भी कह देती हो. तुम्हें कहना था आप के पिताजी नहीं रहे, सुन कर दुख हुआ. किसी दिन मरवाओगी.’ फिर प्यार से कहा था, ‘ऐनी जी, अब चलिए यहां से.’ मेरा हाथ कब प्यार से उस के कंधे पर रखा गया, खुद मुझे भी पता न चला लेकिन यह जरूर पता चला कि प्रथम स्पर्श की अनुभूति अमिट होती है. इन सब बातों से बेखबर ऐनी की मुझे यह पहली सौगात थी.

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