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वह मेरी जिंदगीभर की नौलेज को बेरहमी से काट कर बोली, ‘सर, जिंदगी नहीं, शरीर का बारे में...’

‘अच्छा मजाक छोड़ो, मेरे सवाल का उत्तर दो.’

उस ने शायद पहली बार स्पीड ब्रेकर का इस्तेमाल किया, सोची, फिर बोली, ‘सर, जिंदगी...ज़िंदगी के बारे में...मैं तो सर बाईक के बारे में सोचती हूं जिसे मैं चलाना चाहती हूं. पर...पर वह मेरे पास है नहीं. मैं ब्लैक जींस और टौप के बारे में सोचती हूं जो मुझे पसंद है पर मां पहनने नहीं देती. अपने छोटे भाई को होने वाली हर कमी के बारे में सोचती हूं कि उसे कभी कोई तकलीफ़ न हो. अपने पापा के बारे में सोचती हूं जिन की कमी मुझे हमेशाहमेशा महसूस होता है. काश, आज पापा होते... हर उस कमी के बारे में सोचती हूं जो जीवन की खुशी और खूबसूरती को कम कर देती है.’ फिर वह थोड़ा रुक कर बोली, ‘लेकिन सर, जिंदगी के बारे में तो मैं ने कभी सोचा ही नहीं. वह तो मेरे पास भरपूर थी, भरपूर है. कभी ऐसा लगा ही नहीं कि मेरे पास जिंदगी जैसा चीज़ की कोई कमी हो और मुझे उस के बारे में सोचना पड़े.’ बोलतेबोलते ही अचानक उस ने सवाल किया, ‘लेकिन सर, आप जिंदगी के बारे में क्यों सोचते हैं, आप को क्या  कमी...’ मैं उस का पूरा सवाल सुने बिना ही कुहरे की अदृष्य चादर में लिपट कर खो गया था. पीछे जवाब छोड़ गया था. ‘हां ऐनी, मेरी जिंदगी में... कुछ तो कमी है.’

इस के बाद ऐनी के सामनें मैं हर अर्थ में पराजित ही रहा क्योंकि मैं विजयी नहीं था. धीरेधीरे मेरा मन हीनभावना को आमंत्रित करने लगा था. क्लास में ऐनी की उपस्थिति मुझे हतोत्साहित करती थी. जबकि वह मुझे सहज भाव से देखती रहती. मैं क्या पढ़ा रहा हूं, कहां से शुरू कर कहां खत्म कर रहा हूं, मुझे पता नहीं चलता था. जल्दी ही मुझे इस बात का एहसास हो चुका था कि मैं अपनेआप पर अपना नियंत्रण खो चुका हूं. अब ऐनी मेरी कंट्रोलर थी.

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