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अपरिचित व्यक्ति का टैलीग्राम पढ़ कर, उस के वाक्यों का वह अंश कि ‘अपनी अमानत...’ तनु कुछ सम झ नहीं पा रही थी. फिर शकुन नाम की उस लड़की के साथ कुछ भूलीबिसरी यादें उसे याद आने लगीं.

3 साल पहले शकुन राहुल के दफतर में काम करती थी. राहुल के सहकर्मी इंजीनियर प्रकाश की सड़क दुर्घटना में हुई आकस्मिक मृत्यु के बाद उस की पत्नी शकुन को राहुल ने अपनी कंपनी में नौकरी दिलवाई थी.

तनु 2 बार उस से मिली थी, उसी दौरान शकुन ने अपने बारे में बताया था कि 12 बरस की उम्र में वह अनाथाश्रम में छोड़ दी गई थी, पर कारण उस ने नहीं बताया था. 12वीं की परीक्षा दे कर उस ने टाइप, शौर्टहैंड भी सीखी थी. नौकरी की तलाश में निकली शकुन को नौकरी देने के बजाय प्रकाश ने अपने मांबाप की इच्छा के विरुद्ध उस से शादी कर ली थी.

प्रकाश की मृत्यु के बाद शकुन बिलकुल अकेली हो चुकी थी. बच्चा कोई नहीं था, पर न जाने क्यों, वह बहुत परेशान नजर आई. 4-5 माह बाद ही अपना तबादला अहमदाबाद की शाखा में करवाने के बाद वह तनु से मिलने आई थी.

खैर, जो भी हो, शकुन के जीवन की समाप्ति के बाद उस की बेटी को ले जाने के आग्रह के साथ ‘आप की अमानत’ शब्द तनु के मनमस्तिष्क में उभरतेमिटते रहे.एकाएक तनु को याद आया कि आज लेडीज क्लब में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम है. मन में उभरती यादें समेट कर वह तैयार हो कर निकल पड़ी.

कार्यक्रम खत्म होते ही उसे कंपनी के जनरल मैनेजर की पत्नी सुमेधा मिली. तनु को देखते ही न जाने क्यों सुमेधा पूछने लगी, ‘‘तनुश्री, क्या बात है? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? कैसी मुर झाई सी लग रही हो?’’

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