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लेखक - नरेंद्र कौर छाबड़ा

आखिर एजेंसी से संपर्क कर पूरे दिनरात के लिए अटेंडेंट (सहायक) लगवा दी गई. वह दिनरात इंदु

के साथ ही रहती थी.

महीनेभर बाद इंदु वाकर का सहारा ले कर चलने लगी, लेकिन कमजोरी बहुत आ गई थी और वह घर के कोई काम नहीं कर पा रही थी. घर के कामों, खाना बनाने के लिए भी एक महरी को रखना पड़ा. घर की व्यवस्था चरमरा रही थी, जिस से नीता भी तनाव में आ गई. औफिस की ड्यूटी कर के घर आती तो बीमार सास, लाचार ससुर और अव्यवस्थित घर देख कर वह चिढ़ जाती.

अब इंदु को डाक्टर ने छड़ी के सहारे चलने का निर्देश दिया. वह खुश थी कि अब सबकुछ सहज हो जाएगा. सहायक की निगरानी में ही धीरेधीरे छड़ी के सहारे चलने लगी थी. मुश्किल से 15 दिन बीते होंगे, अचानक एक दिन उन का संतुलन बिगड़ गया और वह औंधे मुंह गिर पड़ी. चेहरे पर काफी चोट लगी. 2 दांत भी टूट गए. यह देख विजयजी तो डर गए. फौरन सुभाष को फोन कर दिया. वह किसी जरूरी मीटिंग में था. किसी तरह मीटिंग रद्द कर के घर लौटा. मां की हालत देख कर वह भी काफी तनाव में आ गया. डाक्टर को ही घर बुला कर दिखाया गया. इंदु से तो चला ही नहीं जा रहा था.

डाक्टर ने उन्हें पूरी तरह आराम करने की सलाह देते हुए कहा कि अभी कुछ दिन चलनाफिरना बंद ही रखें.हमेशा सक्रिय रहने वाली इंदु पूरी तरह बिस्तर से लग गई, तो धीरेधीरे अवसाद और तनाव में घिरने लगी. विजयजी भी एकदम चुप लगा गए थे. घर का माहौल ही बदल गया था. निराशा,

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