नींद पलकों पर बैठी रही रातभर
याद में तेरी सोया नहीं रातभर

तू हवा की तरह बस महकती रही
मुझ को बहला के जाती रही रातभर

पल गए, छिन गए, रात भी कट गई
पास तू छिप के हंसती रही रातभर

मेरी आंखों में जुगनू चमकते रहे
तू भी पूनम सी जगती रही रातभर

ख्वाब तकिए के नीचे छिपे थे कहीं
तू उन्हें गुदगुदाती रही रातभर

रातभर मैं तुझे देखता ही रहा
तू सजतीसंवरती रही रातभर.

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