किसी ने फुरसत से बनाई हैं तुम्हारी आंखें

सारी आंखों में निराली हैं तुम्हारी आंखें

कितनी उम्मीद से देखे हैं मुसाफिर इन को

राह जीने की दिखाती हैं तुम्हारी आंखें

वश में कर लें जिसे इकबार वो क्यूं कर छूटे

काले जादू की पिटारी हैं तुम्हारी आंखें

उम्रभर भूल न पाएंगे इन्हें हम ‘आलोक’

अपनी आंखों में बसा ली हैं तुम्हारी आंखें.

       

- आलोक यादव

 

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