तुम्हारे प्यार को पहचानता हूं मैं
अपना वजूद इसी से मानता हूं मैं
बहुत दिन हो गए जल्दी चले आओ
इस इंतजार को सजा मानता हूं मैं
तुम्हारे बिना मैं भटक सा गया हूं
कहांकहां की खाक छानता हूं मैं
ये अकेलापन मैं सह न पाऊंगा
जबकि तुम हो मेरी जानता हूं मैं
मुझे नहीं है चाह किसी और चीज की
तुम्हें जिंदगी का मकसद मानता हूं मैं
मेरी अंजुलि में फूल तुम्हारे लिए हैं
तुम्हें अपने दिल का दरवाजा मानता हूं मैं.
- बालकृष्ण काबरा ‘एतेश’
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