याद आती हो

तुम बहुत याद आती हो

गए पहर जब

धूप पेड़ों की छत से

डालियों की

खिड़कियों तक उतरती है

वो फर्श पर

लिख जाती है

कईकई तरीकों से

तुम्हारा नाम

और एक दर्द सी

एक याद सी

तुम बहुत सताती हो

शाम जब बादलों से

आसमान घिरा होता है

और पंछी लौट रहे होते हैं

अपनेअपने घर को

मेरे खयाल भी

बिना तुम से मिले

अनखुले खत से

लौट आते हैं.

          

– अमरदीप

 

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