हो हजार या नोट पांच सौ
रद्दी अब ये सारी है
थोड़े दिन की मुश्किल झेलो
ये फरमान सरकारी है
बैंकों में हैं लंबी कतारें
छोड़ के आए काम सभी
कामधंधे सब ठप हुए हैं
छाई बस बेकारी है
नजर बचा कर सब से मां ने
रुपए दिए जो सावन में
मजबूरी में दिए पति को
पड़ी डकैती भारी है
बेटी की शादी में आफत
बाबा बिलखे कतारों में
कैसे नेताओं के घर से
निकली शान सवारी है
कैशलैस हो गए हैं बैंक
रुपए नहीं हैं देने को
नए नोटों की खूब दबा के
चल रही कालाबाजारी है
आएंगे अच्छे दिन जल्दी
मन में आस यही पाले
भीख मांगती खुद का पैसा
जनता हुई बेचारी है.
– पारुल ‘पंखुरी’
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