समझते हैं क्या वो मुझे

एक पंखुड़ी गुलाब की

अब तो मैं हो ही चुकी

अपने हुस्ने जनाब की

प्यार तो मैं ने किया है

इजहार करना है उन को

बाग में खिली थी मैं जब

देख मुसकराए वो मुझे

करीब वो जब आए मेरे

खुशबू बन लिपट गई उन से

रेशम सी नाजुक त्वचा

स्पर्श मखमल का

होंठों से होंठ लगें

तो आ जाता है

प्यार का सैलाब

फिर दिल मेरा आंहें भरता है

डूब जाते हैं वो निगाहों में

करार दिल को तब मेरे आता है

एक पंखुड़ी गुलाब की

हो ही चुकी

हुस्ने जनाब की.

– सुंदर चौहान

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