तेरे खयालों की जुस्तजू में
रात सारी गई ताकते
सिरहाने की सिलवटें
तेरे दीदार की आरजू में
रात सारी गई सुनते
कदमों की आहटें
उदास शामों की
तनहा तनहाइयों की
गहराती परछाइयों में
खोजते रहे अक्स तेरा
दीवानावार हो कर
बदहवास आंखों के
भीने से कोरों से
बहते अश्कों ने
हौले से पुकारा
कहां हो, चले आओ
अब बेसब्र सी यादों के
पहलू के दरमियां
करनी है कुछ गुफ्तगू
दिल से दिल को
कुछ कहने व सुनने के
दौर पर दौर चले तो
गुम होगी तनहाइयां
संग होंगी परछाइयां
बजने लगेंगी जैसे
जोरों की शहनाइयां.
– लीना खत्री
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