उपहास वक्त ने किया यों जिंदगी के साथ
जो थे हमारे खो गए जो हैं बिखर गए.
आए अनेक बार झंझावात जीवन में
फलफूल पल्लव डार से हर बार झर गए.
आई किसी की याद तो बहने लगे झरने
हो रूबरू गुजरे जमाने से सिहर गए.
आई जुदाई की घड़ी मन डूबने लगा
सैलाब जैसे आ गया हो नैन भर गए.
समझाबुझा बहला लिया था बावरे मन को
डोली उठी पर जब उमड़ आंसू बिखर गए.
खोजें कहां उन को गगन में या सितारों में
दो सीपिओं में जो उफनता ज्वार भर गए.
जो हैं हमारे दूर तक छितरे बिखर गए
जो थे हमारे खो गए जाने किधर गए?
- डा. गिरीश सक्सेना
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