सुबहसुबह खिड़की तक जा कर आकाश छुआ जब आंखों ने

सारा आकाश तुम्हारा है कानों में कह दिया किसी ने.

सांझसवेरे रंगबिरंगे नित नूतन चित्र उकेरे

बिन नाविक पतवारों के बादल की नावें तैरें.

कभी स्वर्ण का वैभव कभी सुगंधित सौरभ

बांटे यह आकाश खिले चांदनी तो लगता है

हंसता यह आकाश तारों की जगमग में

लगता शर्माया आकाश. कभी धुंधलके रंग बिछाते

कभी उजाले सजते नवनिर्मित परिधानों में

लगे रम्य आकाश. दूरदूर तक विहग नापते

मिला आदि न अंत है अनंत आकाश.

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