दिल में कोई चुभन दबी सी है
जिंदगानी में कुछ कमी सी है
हर तरफ कैसी तीरगी सी है
क्यों तमन्ना बुझीबुझी सी है
हूबहू आप सा है वो चेहरा
और आदत भी आप की सी है
था चमन में बहार का आलम
आज रंगत उड़ीउड़ी सी है
बात अब वो नहीं रही तुझ में
तेरे जलवों में कुछ कमी सी है
मंजिलों की तलाश है लेकिन
कोशिशों में अभी कमी सी है
वह बदलता है रंग पलपल में
उस की फितरत न आदमी सी है
कारवां से बिछुड़ गए हिमकर
और यह राह अजनबी सी है.
– हिमकर श्याम
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