काश, हमतुम न कभी
यों कहीं मिले होते
चाहतों के फिर नहीं
ऐसे सिलसिले होते.
तुम्हें चाह कर भी
न जतलाने की खता मेरी
अपनी तकदीर से
शिकवे न कुछ गिले होते.
चश्मेनम दर्देजिगर
पाते नहीं रातों में
सपने आंखों में मेरी
उन के न पले होते.
ख्वाहिशों की मजारें
बनती नहीं सीने में
बेकसी के चिराग
उन पे न जले होते.
राहों पर तनहा
गुजरने की जो आदत होती
दिल से दिल मिलने के
हादसे टले होते.
जिंदगी कट रही थी
चैनोअमन से अपनी
सर्द आहों के कुसुम
फिर क्यों जलजले होते.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
(1 साल)
USD48USD10
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
(1 साल)
USD100USD79
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और





