उम्र के हर मोड़ पर हम ने खुद को बहलाया है
खुद पर हंस कर खुद को हंसाया है
कब कौन सा खयाल आया ये कौन जाने
पर इस खयाल ने ही हमें सब से मिलाया है
इस दौरे आतिशी से
हमें नहीं लगता डर हम आग से खेलते हैं
खिलौने की तरह
एक उम्र हुई उम्मीद के सहारे अब ये उम्मीद दगा देने को है
हर सहर भी अब शब लगे एक आरजू है बस ये ही
आरजू न रहे या उम्र न रहे
हम से दिल ले कर
हमें क्या दोगे कर सको तो इतना करना
हमें याद रखना नाज हो हमें भी कि हम कुछ थे.
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सरिता से और