लहराता हुआ ये आंचल मेरा

अकसर तुम को छू जाता है

नहीं है कोई जज्बात

फिर कैसे चाहत बढ़ाता है

इन में जो तारे टिमटिमाते हैं

लगता है तुम्हारे होंठ मुसकराते हैं

नहीं है कोई करीब

फिर भी नजदीकियों का एहसास

सलवटें मेरे आंचल की

जो तुम से लिपटा करती हैं

रहरह कर तुम्हारा हाल ए दिल

मुझ से कहा करती हैं

चाहत है बस इतनी

मेरी आंखों में अब

हो घूंघट में चेहरा मेरा

और उठा लो आ कर तुम.

       

– मोनालिसा पंवार

 

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