न्याय की मूर्ति
पट्टी खोलो और देखो
देख कर ही समझ आएंगी
बहुत सी बातें
सुन कर जो न्याय किया
वो अन्याय ही था

देखो बढ़ती पेशी से
ढलती उम्र को
देखो गवाह के चेहरे को
सच बोल रहा है
या पैसे खा कर
बना हुआ है झूठा गवाह

कटघरे में खड़ा हुआ
मुल्जिम है या नेक आदमी
तारीख देदे कर आदमी
जवान से बूढ़ा हो गया
न्याय के लिए चक्कर लगालगा
चप्पलें घिस गईं, उम्र बीत गई

जिस के पास सुबूत नहीं
अपने बचाव में
क्या वह अपराधी है
जिस के पास गवाह हैं
सुबूत हैं
क्या वह निर्दोष है

देखो न्याय की मूर्ति
आंखों से देखो, पट्टी खोलो
कहीं पुलिस झूठा केस
बना कर तो नहीं लाई
इंसाफ करो अब
बंद करो नाटक न्याय का.

देवेंद्र कुमार मिश्रा
 

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