अब तक की कथा :
आगे की योजना तैयार करने के लिए धर्म दिया को अपने घर ले आया. धर्म के घर आ कर दिया ने धर्म से पासपोर्ट दिखाने के लिए कहा. धर्म ने घरभर में पासपोर्ट तलाश कर लिया परंतु कहीं नहीं मिला. दिया को फिर से धर्म पर संदेह होने लगा. दोनों ने मशवरा किया और भारतीय दूतावास जाने का फैसला कर लिया. अब आगे…
रातभर दिया उनींदी रही. शरीर थका होने के कारण उसे बुखार भी आ गया था. धर्म का दिमाग बहुत असहज और असंतुलित सा था. कहीं ईश्वरानंद की सीआईडी तो उस के पीछे नहीं है?अचानक फोन की घंटी टनटना उठी. घबराते हुए धर्म ने फोन उठाया. दूसरी तरफ नील की मां थीं.
‘‘जी, क्या बात है, रुचिजी?’’
‘‘धर्मानंदजी, दिया को अभी यहां ले कर मत आना. नील के साथ नैन्सी भी आज यहां पहुंच गई है. बड़ी मुश्किल हो जाएगी,’’ वे काफी घबराई हुई थीं.
‘‘नैन्सी तो जानती है कि कोई मेहमान आई हुई हैं आप के यहां,’’ धर्म ने उन्हें उन के ही जाल में लपेटने का प्रयत्न किया.
‘‘आप नहीं जानते, मेरे लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी. आप उसे अपने पास ही रखिए. मैं आप को बताऊंगी, उसे कब यहां लाना है.’’
बेशक कुछ समय के लिए ही सही, पर धर्म व दिया के रास्ते का एक कांटा तो अपनेआप ही हट रहा था.
तेज बुखार के कारण दिया शक्तिहीन सी हो गई थी. धीरेधीरे चलती हुई वह रसोई में आ कर धर्म के पास बैठ गई.
‘‘धर्म, अब हमें एंबैसी चलना चाहिए. देर करने का कोई मतलब नहीं है,’’ दिया ने कहा.
‘‘पर दिया, तुम इस लायक तो हो जाओ कि थोड़ा चल सको. एक तो कल से तुम ने कुछ ठीक से खाया नहीं है, दूसरे, बुखार के कारण और भी कमजोर हो गई हो.’’
‘‘मुझे वहां कोई चढ़ाई थोड़े ही चढ़नी है, धर्म? एंबैसी में जल्दी पहुंच सूचित करना बेहद जरूरी है.’’
अचानक ही धर्म की दृष्टि कांच की खिड़की से बाहर गई और वह हड़बड़ा कर रसोई से निकल कर ड्राइंगरूम की ओर भागा. दिया को कुछ समझ में नहीं आ रहा था. किसी ने धीरे से दरवाजे पर खटखट की थी. आंखें खोल कर जब दिया ने इधरउधर दृष्टि घुमाई तो धर्म का कहीं अतापता नहीं था. वह डर गई. अचानक धर्म आया और होंठों पर हाथ रख कर उस ने दिया को चुप रहने का संकेत भी किया. संकट को देखते हुए धर्म ने पुलिस को फोन कर दिया था.
एक बार फिर खटखट हुई. अब धर्म ने जा कर दरवाजा खोला व आगंतुकों को ले कर अंदर आ गया.
‘‘दरवाजा खोलने में इतनी देर क्यों हुई, धर्मानंदजी?’’
आगंतुकों में एक तो उस के चेले के समान रवींद्रानंद यानी रवि था और दूसरा पवित्रानंद, जो धर्म से काफी सीनियर था.
‘‘क्या बात है? यहां कैसे?’’ धर्मानंद ने सहज होने का प्रयास किया.
उसे शक तो था ही परंतु मन में कहीं भ्रांति भी थी कि वह ईश्वरानंद से कह कर, उन्हें बता कर आया था इसलिए शायद…
‘‘आप ने गुरुजी को इन्फौर्म भी नहीं किया? वे परेशान हो रहे हैं. आप को समझना चाहिए कि उन्हें आप की और दियाजी की कितनी चिंता है. एक तो आप कल के फंक्शन में से गायब हो गए और दूसरे…खैर, गुरुजी बहुत परेशान हो रहे हैं.’’
‘‘गुरुजी को फोन पर, इन्फौर्म कर देते,’’ रवींद्रानंद ने फिर से अपना मुंह खोला.
धर्म उसे घूर कर रह गया था.
‘‘दियाजी कहां हैं?’’ पवित्रानंद ने सपाट प्रश्न किया.
‘‘रसोई में. गुरुजी जानते हैं वे मेरे साथ हैं. फिर परेशानी क्यों?’’ धर्म ने ऊंचे स्वर में कहा कि दिया सुन सके. परंतु पवित्रानंद आंधी की भांति रसोई में प्रवेश कर गया जहां दिया आंखें मूंदे कुरसी से गरदन टिका कर बैठी थी.
‘‘दियाजी,’’ पवित्रानंद ने धीरे से, बड़े प्यार से दिया को पुकारा.
दिया चौंकी, आंखें खोल कर देखा तो अचानक घबरा कर खड़ी होने लगी. उस का चेहरा पीला पड़ा हुआ था और वह बहुत अस्तव्यस्त दिख रही थी.
‘‘अरे बैठिए, आप बैठिए, मैं पवित्रानंद,’’ उस ने दिया के समक्ष नाटकीय मुद्रा में अपने दोनों हाथ जोड़ दिए.
भय के कारण दिया को दिन में ही तारे दिखाई देने लगे थे. अचानक पवित्रानंद ने दिया के माथे पर अपना हाथ घुमाया.
‘‘अरे, आप को तो बुखार है,’’ पवित्रानंद ने उसे सहानुभूति की बोतल में उतारने की चेष्टा की.
धर्म और रवींद्रानंद भी वहां आ चुके थे.
‘‘धर्म, आप ने बताया नहीं, दियाजी बीमार हैं?’’ पवित्रानंद के लहजे में शिकायत थी.
‘‘गुरुजी जानते हैं,’’ धर्म ने ठंडे लहजे में उत्तर दिया.
दिया की समस्या अभी अनसुलझी पहेली सी बीच में लटक रही थी जिस का जिम्मेदार कहीं न कहीं धर्म स्वयं को मान रहा था.
‘‘धर्म, चलो दिया को ले चलते हैं. गुरुजी ही ट्रीटमैंट करवा देंगे,’’ अचानक पवित्रानंद ने धर्म के समक्ष प्रस्ताव रख दिया.
‘‘पर, ऐसी हालत में?’’ दिया के स्वेदकणों से भरे हुए मुख पर दृष्टिपात करते हुए धर्म ने कहा.
‘‘कुछ देर और इंतजार कर लेते हैं, फिर चलेंगे. तब तक दिया भी कुछ ठीक हो जाए शायद.’’
‘‘कम से कम गुरुजी को सूचित तो कर दें,’’ कह कर पवित्रानंद ने अपना मोबाइल निकाल कर गुरुजी से बात करनी प्रारंभ की ही थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया.
‘‘प्लीज, ओपन द डोर,’’ बाहर से किसी अंगरेज की आवाज सुनाई दी.
‘‘कौन होगा?’’ पवित्रानंद ने जल्दी से बात पूरी कर के मोबाइल बंद कर अपनी जेब में डाल लिया.
एक बार फिर खटखट हुई
‘‘कौन होगा?’’
‘‘मैं कैसे बता सकता हूं? खोलना पड़ेगा न,’’ धर्म आगे बढ़ा और दरवाजा खोल दिया.
‘‘पुलिस…’’ रवींद्रानंद और पवित्रानंद दोनों चौंक उठे. वे धर्म की ओर प्रश्नवाचक मुद्रा में देखने लगे.
धर्म ने मुंह बना कर कंधे उचका दिए. वह क्या जाने भला. परंतु पवित्रानंद ने भी घाटघाट का पानी पी रखा था. उस के मस्तिष्क में घंटियां टनटनाने लगी थीं.
‘‘हू इज दिया?’’ लंबेचौड़े ब्रिटिश पुलिस पुरुषों के पीछे से एक खूबसूरत महिला ने झांका.
‘‘हू इज दिया?’’ प्रश्न एक बार फिर उछला.
दिया ने अपनी ओर इशारा कर के बता दिया कि वही दिया है.
‘‘ऐंड यू?’’ बारीबारी से तीनों पुरुषों के नाम पूछे गए.
कोई चारा नहीं था. गुरुजी के प्रिय भक्तों को अपना नाम बताना पड़ा. समय ही नहीं मिला था कि वे अपने लिए कोई झूठी कहानी गढ़ पाते. धर्म ने भी अपना नाम बताया. दिया अंदर से कुछ डर रही थी. धर्म की भी पोलपट्टी अभी खुल जाएगी. पर जब पुलिस ने धर्म से कुछ पूछताछ ही नहीं की तब दिया को आश्चर्य हुआ. वह चुप ही रही. महिला पुलिस मिस एनी ने दिया को सहारा दिया और ड्राइंगरूम में ले आई. दौर शुरू हुआ दिया से पूछताछ का. दिया काफी आश्वस्त हो चुकी थी. उस ने अपनी सारी कहानी स्पष्ट रूप से बयान कर दी. साथ ही पवित्रानंद व रवींद्रानंद की ओर इशारा भी कर दिया कि विस्तृत सूचनाओं का पिटारा वे दोनों ही खोल सकेंगे. एनी के साथसाथ बाकी पुलिस वाले भी बहुत सुलझे हुए थे. पुलिस वालों ने रवींद्रानंद और पवित्रानंद के मोबाइल भी जब्त कर लिए. अब तो भक्तजनों के पास कोई चारा ही नहीं रह गया था, कैसे गुरुदेव को सूचना दी जाए? दोनों जल बिन मछली की भांति तड़प रहे थे. संबंधित विभागों को सूचनाएं प्रेषित कर दी गई थीं. अप्रत्याशित घेराव के कारण ईश्वरानंद के चेलों के चेहरे के रंग उड़ गए थे, वे एकदूसरे की लाचारी देख कर मुंह पर टेप चिपका कर बैठ गए थे. निराश्रित से बैठे रेशमी वस्त्रधारियों के श्वेत वस्त्र धीरेधीरे झूठ व बदमाशी के धब्बों से मैले होते जा रहे थे और मुख काले. उन के नेत्रों में भयभीत भविष्य की तसवीर उभर आई थी.
चारों लोगों को 2 गाडि़यों में 2-2 पुलिसकर्मियों के साथ बांट दिया गया. एक गाड़ी नील के घर के लिए व दूसरी ईश्वरानंद के आनंद में विघ्न डालने के लिए निकल पड़ी थी. पुलिस वाले आपस में वार्त्तालाप कर रहे थे. उन्हें महसूस हो रहा था कहीं यह घटना वर्षों पूर्व घटित घटना का कोई हिस्सा तो नहीं हो सकती? एनी शीघ्र ही दिया से घुलमिल गई थीं. दिया ने धर्म के बारे में भी सारी बातें एनी को बताईं तो एनी धर्म से भी बहुत सहज हो गई थीं. पुलिसकर्मियों के मन में दिया व धर्म दोनों की छवि साफसुथरी लग रही थी. पुलिस ने जो कुछ भी धर्म से पूछा उस ने बड़ी ईमानदारी से सब प्रश्नों के उत्तर दिए थे. दिया तो सबकुछ बता ही चुकी थी, रहासहा सच उस ने गाड़ी में नील के घर की ओर आते हुए उगल दिया था. एनी ने उस से बिलकुल स्पष्ट रूप से पूछा था कि वह क्या चाहती है?
दिया ने बड़े सपाट स्वर में कहा था कि वह उन सब लोगों के लिए बड़ी से बड़ी सजा चाहती है जो धर्म के नाम पर देह का व्यापार कर के उस के जैसी मासूम लड़कियों का जीवन बरबाद करने में जरा सा भी संकोच नहीं करते. न जाने उन लोगों के हाथ कितनी मासूम लड़कियों के खून से रंगे हुए होंगे. दिया ने अपने विवाह से ले कर, नील के व्यवहार, मिसेज शर्मा की दकियानूसी बातें, अपने मानसिक उत्पीड़न के बारे में विस्तारपूर्वक खुल कर एनी से बात की थी. गाड़ी में बैठेबैठे ही काउंसिल जनरल औफ इंडिया से फोन पर बात कर ली गई थी. एनी ने दिया से उस के पासपोर्ट नंबर के बारे में पूछा, दिया को नंबर याद नहीं था. धर्म के मुख से निकल गया था कि पासपोर्ट और कहीं नहीं, ईश्वरानंद की कस्टडी में ही होगा. बातों ही बातों में रास्ता जल्दी ही कट गया.
कमजोरी के बावजूद दिया अंदर व बाहर से काफी स्वस्थ महसूस करने लगी थी. एनी ने दिया की पीड़ा महसूस की और उस के कंधे पर सहानुभूति भरा हाथ रख कर उसे आश्वस्त कर दिया. कुछ देर पश्चात पुलिस ने मिसेज शर्मा के घर पर दस्तक दे दी. दरवाजे की आवाज से मिसेज शर्मा चौंक उठीं. ड्राइंगरूम में तिगड़ी जमी हुई थी. नील, नैन्सी और रुचिका यानी मिसेज शर्मा. तीनों सोफों पर जमे पड़े थे. खैर, दरवाजा खोलने वे ही आई थीं, चहकती सी. धर्मानंद को देखते ही उन की चहकन को ब्रेक लग गया, दिया भी मुंह बनाए साथ ही खड़ी थी.
‘‘धर्मानंदजी, क्या कहा था मैं ने आप से?’’ उन की स्नेहमयी मुद्रा अचानक रौद्रमयी मुद्रा में परिवर्तित हो उठी, जैसे उन की पीठ पर चाबुक पड़ गया हो.
दरवाजे के बाहर से ही ड्राइंगरूम के दृश्य के स्पष्ट दर्शन हो रहे थे. धर्म उन की बात का कुछ उत्तर दे पाता, इस से पहले ही पुलिसवर्दी में 1 पुरुष व 1 महिला ने धर्म और दिया के पीछे से अपने गोरे मुखड़ों के दर्शन दे दिए. पुलिस वालों को देखते ही उस की रौद्रमयी मुद्रा की घिग्गी सी बंध गई. वे न तो कुछ बोल पाईं और न ही नील को पुकार पाईं. उन के पैर लड़खड़ाने लगे और वे लगभग गिरने को हुईं कि महिला पुलिस ने उन्हें अपनी मजबूत बांहों में थाम लिया और एक के बाद एक सब ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया, जहां प्रणय में डूबा हंसों का जोड़ा किल्लोल कर रहा था. कमरे में कदमों की आहट सुन कर हंसों का जोड़ा बिदक गया.
‘‘धर्म, ह्वाट इज दिस? ऐंड यू?’’ नील ने दिया की ओर इशारा किया.
नील का वाक्य पूरा होने से पहले ही सब लोग कमरे में प्रवेश कर चुके थे और चुपचाप नैन्सी व नील के सामने वाले सोफे पर निश्चिंतता से बैठ चुके थे. कोई कुछ भी समझ पाने की स्थिति में नहीं था. मानो कोई चलचित्र सा सब की दृष्टि के आगे चल रहा था. सब से पीछे नील की मां को थामे एसीपी एनी कमरे में पहुंच गईं और उन्होंने उन्हें एक कुरसी पर लगभग लिटा सा दिया था.
अब एनी के हाथ में दूसरे पुलिसकर्मी ने पैन और कागज देने चाहे. एनी ने उस को ही लिखने का इशारा किया और स्वयं चारों ओर का जायजा लेने लगीं.
‘‘हाऊ मैनी मैंबर्स आर हियर?’’
‘‘थ्री,’’ नील ने नैन्सी को आलिंगन मुक्त कर दिया था.
‘‘नेम आफ द मैंबर्स?’’
‘‘मिसेज रुचिका शर्मा, नील शर्मा ऐंड दिया शर्मा,’’ नील फटाफट बोल गया.
‘‘इज शी दिया?’’ पुलिसमैन ने नैन्सी की ओर इशारा कर के पूछा.
‘‘नो.’’
‘‘हू इज शी?’’
‘‘शी इज नैन्सी.’’
‘‘शी इज योर वाइफ?’’
‘‘नो, शी इज माय गर्लफ्रैंड.’’
‘‘हू इज दिया?’’
‘‘दिया, दैट गर्ल,’’ नील ने दिया की ओर इशारा किया.
‘‘हू इज शी? इज शी योर सिस्टर?’’
‘‘नो, शी इज अवर गैस्ट फ्रौम इंडिया.’’
‘‘इज शी स्टेइंग हियर?’’
‘‘यस.’’
‘‘वी वौंट टू सी हर पासपोर्ट.’’
नैन्सी का इश्क काफूर हो गया था. नील और उस की मां की सांसें रुकने लगीं. जिस धर्म पर वे लोग हमेशा अपने एहसानों की गठरी लादे रखते थे, आज उसी ने उन की पीठ पर वार किया था. मिसेज शर्मा के दिमाग में भन्नाहट भर उठी थी. तभी नील मुड़ कर फोन उठाने लगा, ‘‘नो, नो कौल प्लीज,’’ पुलिस वाले ने नील के हाथ से फोन ले लिया.
‘‘इट्स अर्जेंट,’’ नील ने कहा.
दोनों पुलिसकर्मियों ने एकदूसरे की ओर देखा और इशारों से बात कर के आखिरकार उसे फोन करने की इजाजत दे दी. वे दोनोें ही नहीं बल्कि धर्म व दिया भी जानते थे कि नील इस समय किस से बात करना चाहता है.
‘‘यस,’’ नील के डायल करते ही उधर से रोबीली आवाज आई. यह वह आवाज तो नहीं थी जो उस का उद्धार कर पाती.
उस ने फिर से कहा, ‘‘हैलो.’’
‘‘यऽऽऽ..स,’’ फिर वही भारी आवाज.
नील के मस्तिष्क को उस आवाज ने मानो ट्रैप कर लिया. माजरा क्या है? उस की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. वह तो गुरुजी का पर्सनल फोन था जिस को उठाने की इजाजत स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, महेश को भी नहीं थी. एक बार फिर ट्रायकरने के चक्कर में नील ने फिर से रिडायल का बटन दबा दिया.
‘‘मे आय टौक टू गुरुजी, प्लीज,’’ निहायत डरतेडरते उस ने पूछा.
‘‘नो, यू कांट,’’ फिर वही रोबीली आवाज.
‘‘हू इज दैट साइड?’’
‘‘दिस इज इंस्पैक्टर जौर्ज, हू इज देयर?’’
यह सुनते ही नील को काटो तो खून नहीं. उस के हाथ कंपकंपाने लगे. उस ने चुपचाप रिसीवर रख दिया और धर्म को घूरने लगा.उधर, नैन्सी के चेहरे पर भी हवाइयां उड़ रही थीं. कहां तो वह नील की मां को पोते का प्रलोभन दे कर उसे ब्लैकमेल करने लगी थी, कहां वह स्वयं इस पुलिसवुलिस के चक्कर में फंस रही है.
‘‘नील, आय वौंट टू गो फ्रौम हियर,’’ नैन्सी अचानक अपना बैग समेट कर खड़ी हो गई.
‘‘नो, यू कांट गो फ्रौम हियर,’’ एनी ने बड़े स्पष्ट व सपाट स्वर में उस की बात काट दी.
‘‘बट, आय एम नौट द फैमिली मैंबर. आय एम जस्ट ए फ्रैंड औफ नील,’’ उस ने स्वयं को बरी करने का प्रयास किया.
‘‘मैम, यू आर प्रेजेंट हियर, यू कांट गो. एवरीबडी हैज टू बी पे्रेजेंट ऐट द पुलिस स्टेशन,’’ एनी ने बड़े धीरज मगर सख्ती से उसे समझाने का प्रयास किया.
‘‘बट…ह्वाय शुड आय? आय हैव नो कनैक्शन विद द फैमिली,’’ वह लगभग चीखी.
‘‘डोंट वरी, आफ्टर सम इन्क्वायरीज यू वुड बी रिलीव्ड, नो प्रौब्लम,’’ एनी ने उसे कंधों से पकड़ कर बड़े आराम से सोफे पर बिठा दिया.
नैन्सी बेचारी रोने को हो आई. खूबसूरत नैन्सी के गुलाबी मुखड़े पर बेचारगी पसर आई थी. निकलने का कोई रास्ता ही नजर नहीं आ रहा था. बुरी फंसी. भुनभुन करती हुई वह कभी नील को तो कभी उस की मां को घूरने लगी. मिसेज शर्मा का तो और भी बुरा हाल था. वे कभी दिया, कभी धर्म तो कभी नैन्सी को घूरे जा रही थीं. ‘कमाल है, ऐसे लोग भी होते हैं? अभी तो यह लड़की यहां बैठी नील से फ्यूचर प्लान डिसकस कर रही थी और अभी आय एम नौट फैमिली मैंबर हो गई. और यह धर्म का बच्चा? हाय, कितना बड़ा घाव दिया है इस बेहूदे ने. कहां तो रुचिजी, रुचिजी करता आगेपीछे घूमता रहता था और इस खूबसूरत बला के चक्कर में पड़ते ही हमें पुलिस तक पहुंचा दिया. इस की मां की बीमारी में इतनी हैल्प की और इस ने ही पीठ में छुरा घोंप दिया.’
‘‘यस, प्लीज शो दियाज पासपोर्ट,’’ एनी ने अपने असिस्टैंट से रिपोर्ट के कागज ले कर उन्हें पलटते हुए मिसेज शर्मा से कहा. मिसेज शर्मा अपनी सोच की गुफा से अचानक बाहर आ गिरीं. अब तक तो अंधेरा ही था, अब तो सामने ही इतनी गहरी खाई दिखाई दे रही थी उन्हें और उन के बेटे को. उस में कूदना ही पड़ेगा. कैसे निकल भागे? उन्होंने बेबस दृष्टि बेटे पर डाली.
‘‘मैडम, एक्च्वली…मिसिंग…’’ नील के पास और कुछ बताने का रास्ता ही नहीं था.
‘‘मिसिंग? ह्वेन? डिड यू रिपोर्ट एबाउट द पासपोर्ट?’’ पुलिस का रुख कड़ा होता जा रहा था.
‘‘दैट मस्ट बी विद धर्मानंद,’’ नील ने धर्म को लपेटने का प्रयास किया. वह जानता तो था ही कि उस की मां ने पासपोर्ट धर्म को दिया था.
एनी बहुत नाराज दिखाई दे रही थीं. पासपोर्ट के बारे में तो नील व उस की मां को भी यही मालूम था कि वह धर्म के पास है. अब? बात तो उलझती ही जा रही थी. उधर, सोफे पर बेचैनी से पहलू बदलती हुई नैन्सी अपने बचाव की फिराक में कभी नील के कान में भुनभुन करती, कभी उसे घूर कर देखती. नील बेचारा परेशान हो गया. वहां से कहीं और जा कर बैठ भी नहीं सकता था. सारे सोफे भरे हुए थे. हार कर उस ने एक बार और कोशिश करनी चाही. ‘‘प्लीज, कोऔपरेट, एवरीबडी,’’ एनी ने इशारा किया और इंस्पैक्टर ने सब को बाहर चलने का रास्ता दिखाया.
सब को पुलिस की गाड़ी में बैठने के आदेश मिले. नील की मां बेचारी और लंगड़ाने लगीं, उन के पैरों का दर्द असहनीय हो उठा. एनी ने उन्हें सहारा दे कर गाड़ी में बिठा दिया. बचारा नील, मां को घूरते हुए सोचने लगा कि उन के कारण ही वह दिया को हाथ तक न लगा पाया और अब नैन्सी भी उस के हाथों से फिसल रही है. न इधर के रहे, न उधर के. पुलिस की दूसरी गाड़ी पवित्रानंद और रवींद्रानंद को ईश्वरानंदजी के पास ले जा रही थी. दोनों की जान सांसत में थी. उन के मोबाइल भी जब्त कर लिए गए थे. पुलिस वालों ने उन से आश्रम का रास्ता दिखाने को कहा. मना करने या रास्ता न दिखाने का तो प्रश्न ही नहीं था. अचानक पवित्रानंद का मोबाइल बजा. अफसर ने मोबाइल का स्पीकर औन कर के उसे पकड़ा दिया.
‘‘अरे, कहां रह गए हैं आप लोग? दिया और धर्म मिल गए क्या?’’ ईश्वरानंद की रोबीली आवाज थी. आवाज सुन कर पवित्रानंद के चेहरे से लग रहा था कि उस के गले में किसी ने पत्थर अड़ा दिया था.
‘‘बोल क्यों नहीं रहे हो? कब आ रहे हो? धर्म और दिया साथ ही हैं न?’’
प्रश्नों का पुलिंदा खोल कर बैठ गया था ईश्वरानंद. पवित्रानंद को काटो तो खून नहीं. अफसर ने उसे उत्तर के लिए इशारा किया.
‘‘जी, हम लोग आ ही रहे हैं.’’
‘‘दिया साथ में ही है न?’’ फिर से वही प्रश्न.
पुलिस अफसर हिंदी बोलने में हिचकिचाते थे परंतु हिंदी व पंजाबी समझने में उन्हें कोई विशेष दिक्कत नहीं होती थी. पवित्रानंद को गुरुजी के कुछ ऐसे प्रश्नों के उत्तर देने के लिए बाध्य होना पड़ा जो पुलिस जानना चाहती थी. पवित्रानंद को डर था कहीं उस की बातें टेप न हो रही हों. उस ने बस इतना ही कहा, ‘‘थोड़ी देर में पहुंच रहे हैं, रास्ते में ही हैं.’’
पुलिस की गाड़ी को गलियों में घूमते हुए काफी देर हो गई थी. अफसर भन्ना उठे, उन्होंने सख्ती से कहा कि वे चुपचाप उन्हें आश्रम पहुंचा दें वरना वे कुछ और सोचते हैं. वे समझ चुके थे कि गाड़ी घुमा कर ये होशियार बंदे उन का समय बरबाद करना चाहते थे.
घबराए हुए तो थे ही दोनों. काफी देर से पुलिस को मूर्ख भी बना रहे थे. समझ गए थे कि अब यह खेल अधिक देर तक नहीं खेला जा सकता. इसलिए उन्होंने परमानंद धाम के सही मार्ग की दिशा में गाड़ी मुड़वा दी. केवल 5 मिनट बाद ही गाड़ी एक गैरेजनुमा दरवाजे के बाहर खड़ी थी.वही मुख्यद्वार, वही गैरेजनुमा बड़ा सा हौल जहां धर्म, दिया को ले कर पहली बार आया था. बिलकुल सुनसान पड़ा था वह स्थल. सुंदर, सजी हुई जगह पर कोई जीवजंतु नहीं. हां, जंतु ही तो थे वे लोग, धर्म के नाम पर झूठ और मक्कारी के ना म पर पलने वाले कीड़े. बिना मस्तिष्क का प्रयोग किए कहीं पर भी रेंग जाने वाले.
अफसरों ने दोनों भक्तों से कईकई बार गुरुजी के बारे में पूछा पर उत्तर नदारद. पवित्रानंद व रवींद्रानंद चैन की सांस ले रहे थे. उन्हें भय था कि रात के कार्यक्रम के बाद अब सब लोग अपनेअपने दैनिक कार्यों में उलझ गए होंगे और प्रतिदिन की भांति यहां पर कोई न कोई मिल ही जाएगा. ओह, बच गए, दोनों की आंखों में चमक आ गई थी. अचानक सामने वाली दीवार पर लगी गोल्डन पेंटिंग ऊपर उठी और उस में से 3-4 लोगों ने हौल में प्रवेश किया. ओह, तो यह बात है. पुलिस अफसर ने पेंटिंग के पीछे से निकलने वाले लोगों को एक ओर बिठा दिया और उन से ईश्वरानंद के बारे में पूछताछ करने लगे पर किसी ने कुछ नहीं बताया. पुलिस सभी का मोबाइल जब्त कर चुकी थी.
अफसर ने आगे बढ़ कर पेंटिंग को हिलानेडुलाने का प्रयास किया लेकिन तब तक पेंटिंग दीवार पर चिपक चुकी थी. अफसर ने वहां बैठे हुए लोगों को पेंटिंगनुमा दरवाजे को खोलने का आदेश दिया परंतु कोई टस से मस नहीं हुआ. पुलिस अफसर जौर्ज को पता चल चुका था कि नील, उस की मां, नैन्सी, धर्म व दिया आदि पुलिस स्टेशन पहुंच चुके थे. उस ने फोन कर के दिया व धर्म को भी वहां से आने वाली पुलिस फोर्स के साथ बुला लिया था. लगभग 20-25 मिनट में पुलिस की गाड़ी सब को भर कर वहां पहुंच गई थी. इन लोगों के पहुंचने तक स्थिति वैसी ही बनी हुई थी. अब पुलिसकर्मी डंडों से दीवार को बजाबजा कर अंदर जाने का मार्ग खोजने का प्रयास करने लगे थे. परंतु रहस्य था कि खुल नहीं रहा था.
-क्रमश: