बाहर हर तरफ पानी से भरे गड्ढे दिख रहे थे, ‘इस का मतलब रात से ही लगातार बारिश हो रही है. मौसम कितना खुशगवार है पर मैं कितनी अकेली हूं. दोनों बच्चे होस्टल में हैं और समीर…जब देखो तब बाहर ही रहते हैं. वैसे देखा जाए तो कितनी सुखी हूं मैं. कर्मठ व ईमानदार पति, होनहार बच्चे, बंगला, गाड़ी, नौकर सबकुछ तो है. बस, है नहीं तो केवल समीर का साथ. समीर रेलवे में उच्च पद पर हैं, जो अकसर काम की देखरेख के सिलसिले में बाहर ही रहते हैं.’

‘‘मेम साहब, मेम साहब…’’ रामू की आवाज से मंजरी की तंद्रा टूटी.

एक लंबी सांस ले कर वह दरवाजा खोलने के लिए बाहर आई. वापस आते हुए बैठक का नजारा देख कर उस की चीख निकलतेनिकलते बची, कमरे के एक तरफ की छत से टपटप पानी गिर रहा था और कीमती कालीन का एक बड़ा हिस्सा पानी से पूरी तरह भीग चुका था.

‘‘रामू, रामू…’’ मंजरी ने जोर से आवाज लगाई.

‘‘जी, आया, मेम साहब,’’ रामू ने गरम चाय का प्याला मंजरी को पकड़ाया.

‘‘रामू, यह कालीन जरा बरामदे में खड़ा कर दो, फिर बाकी सामान भी दूसरी तरफ किनारे की ओर खिसका दो,’’ चाय पीते हुए मंजरी ने कहा.

चाय पी कर अपने कमरे से मंजरी ने रेलवे के सेक्शन इंजीनियर के दफ्तर में फोन मिलाया. काफी देर घंटी बजने के बाद उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो, सेक्शन आफिस.’’

‘‘हैलो,

हां, क्या सेक्शन इंजीनियर साहब हैं?’’ मंजरी ने पूछा.

‘‘साहब तो बाहर कर्मचारियों को आज की ड्यूटी बांट रहे हैं. अभी बहुत व्यस्त हैं.’’

‘‘उन्हें बताओ कि बंगला नं. 40 की छत से बहुत पानी टपक रहा है. जल्दी से किसी को ठीक करने के लिए भेज दें.’’

‘‘सौरी, मैडम, आज तो कुछ नहीं हो सकता. बड़े साहब के घर में काम चल रहा है.’’

‘‘लेकिन यहां भी तो बहुत जरूरी है. यह घर…’’ मंजरी के वाक्य पूरा करने से पहले ही दूसरी तरफ से फोन रख दिया गया.

मंजरी ने झल्लाते हुए फोन रखा ही था कि उस के सिर पर टपाटप 3-4 बूंदें गिरीं. उस ने चौंक कर ऊपर देखा तो पंखे के बीचोंबीच से पानी टपक रहा था. यह तो अच्छा हुआ कि उस समय पंखा बंद था.

मंजरी ने फौरन बिजली विभाग का नंबर मिला कर पंखा खराब होने की शिकायत दर्ज करा दी और रामू को आवाज दी.

‘‘आया, मेम साहब.’’

रामू को आया देख कर मंजरी बोली, ‘‘सुनो, यह पलंग जरा उधर खिसका दो, और हां, यह पंखा मत चलाना. करंट आ सकता है.’’

मंजरी सोच में पड़ गई थी कि अब पता नहीं कब बिजली विभाग के लोग पंखा ठीक करने आएंगे? यदि समीर यहां होते तो सब दौड़ते हुए आते. मन ही मन सरकारी तंत्र को कोसा. अफसर को सामने देख कर तो काम करते हैं वरना वे…

सोचते हुए मंजरी बरामदे में आई और कालीन को वहां बिछा कर वैक्यूम क्लीनर से सुखाने का प्रयास किया. फिर रामू से कमरे में भरा पानी निकलवाया.

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यह सब करतेकरते 11 बज गए. वह नहाने के लिए जा ही रही थी कि फोन बजा.

‘‘हैलो, मंजरी, मैं मीता, क्या कर रही थी?’’

‘‘अरे, क्या बताऊं, यार, पूरा घर टपक रहा है.’’

‘‘मेरे यहां का तो हाल ही मत पूछ. पिछले 5 दिन से रसोई में टाइल्स लग रही हैं, पर अभी भी पूरी नहीं हुईं.’’

‘‘पता नहीं, कैसे काम करते हैं ये लोग?’’

‘‘खैर, इन सब बातों को मारो गोली. चलो, हम लोग बाजार चलते हैं. कलाकृति में सेल लगी हुई है.’’

‘‘हां…ठीक है, लेकिन दोपहर के बाद चलेंगे.’’

जब मंजरी नहा कर आई तो 12 बज चुके थे. उसे बहुत जोर की भूख लगी थी. सोचा अब नाश्ते का समय तो है नहीं, अत: सीधे खाना ही खा लिया जाए.

खाना खा कर और रामू को भेज कर मंजरी जब अंदर आई तो थक कर चूर हो गई थी. आंख बंद कर वह अभी लेटी ही थी कि दरवाजे की घंटी बजी.

इस समय कौन हो सकता है? उस ने सोचा और बाहर जा कर देखा तो बिजली विभाग के 4 कर्मचारी खड़े थे.

‘‘मैडम, आप का पंखा नहीं चल रहा है?’’

‘‘हांहां, आइए.’’

अंदर आ कर उन्होंने नीचे से ही पंखे को देखा और फिर घड़ी में समय देख कर बोले, ‘‘मैडम, आज तो यह पंखा ठीक नहीं हो सकता.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’

‘‘आज सीढ़ी नहीं है.’’

‘‘पर, भैया, बिना पंखे के हम क्या करेंगे?’’

‘‘बोला न मैडम, आज नहीं हो सकता. अब समय भी नहीं है,’’ कह कर वे चले गए.

मंजरी को बेहद गुस्सा आया पर वह क्या कर सकती थी. सब को कामचोरी की ऐसी आदत पड़ चुकी है कि ऐसा काम जिस में थोड़ी मेहनत हो, वे टालते रहते हैं.

आखिरकार, वह स्टोर से पुराना टेबलफैन निकाल कर ले आई और उसे झाड़पोंछ कर बेडरूम में लगाया. पूरा घर अस्तव्यस्त हो रहा था. इस कारण मंजरी ने मीता को भी बाजार के लिए मना कर दिया. रात को समीर का फोन आया तो मंजरी उफन पड़ी. उस ने पूरी दास्तान सुनाई. समीर ने वादा किया कि वह वहीं से शिकायत करेंगे.

अगले दिन सुबह फिर 3-4 लोगों की एक फौज बाहर खड़ी थी.

‘‘मैडम, आप के घर में पानी टपक रहा है?’’

‘‘हां, इधर देखिए,’’ मंजरी ने कमरे दिखाए.

‘‘ठीक है, मैडम, अभी सीमेंट और सामान लाते हैं.’’

मंजरी का सिर यह देख कर भन्नाने लगा कि अभी क्या ये घूमने के लिए आए थे. खैर, 2 लोग सामान लाने के बहाने चले गए और 2 पेड़ के नीचे बैठ कर बीड़ी पीने लगे.

करीब 1 घंटे के बाद वे दोनों कर्मचारी फिर प्रकट हुए. बाकी दोनों भी अलसाए से उठे और आखिर काम शुरू हुआ. ठक, ठक, ठक…हथौड़े की आवाज सिर में समाती जा रही थी.

‘‘मैडम, मैडम…’’ बाहर से मिस्तरी ने आवाज दी.

‘‘क्या बात है,’’ मंजरी पूछते हुए बाहर आई तो देखा वे लोग सामान समेट कर जाने के लिए तैयार हैं.

‘‘मैडम, हम जा रहे हैं. अब कल आएंगे.’’

‘‘लेकिन, पूरा घर फैला हुआ है.’’

‘‘आज हम लोगों को तनख्वाह मिलेगी, इसलिए अब काम नहीं होगा.’’

‘‘पर, तनख्वाह ले कर आ जाओ.’’

‘‘नहीं, हम लोग वेतन मिलने के बाद काम नहीं करते,’’ मिस्तरी ने दोटूक जवाब दिया.

मंजरी का मन हुआ कि इन्हें धक्के मार कर निकाल दे पर सिर्फ बेबस बनी उन्हें जाते देखती रही.

‘कैसी जंग लग चुकी है इस सिस्टम में,’ उस ने सोचते हुए घर का हाल देखा. पूरे ड्राइंगरूम में धूल भरी हुई थी. छत से सीमेंट और चूना झड़ कर एक अलग दृश्य पेश कर रहे थे. इतने में घंटी बजी. इस बार बिजली वाले थे. उन्हें बेडरूम की राह दिखाई. पंखा बदल कर उन्होंने आवाज लगाई. मंजरी ने जा कर देखा कि पंखे की डंडी बहुत ही छोटी है जिस की वजह से पंखा छत से सट गया है. हवा भी नीचे तक रोरो कर ही पहुंच रही थी.

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‘‘यह पंखा तो बहुत ऊंचा है.’’

‘‘मैडम, आज काम चला लीजिए. कल पाइप ला कर लगा देंगे.’’

‘‘फिर आज ही क्यों नहीं लाए,’’ मंजरी का धैर्य जवाब देने लगा था.

‘‘पाइप स्टाक में नहीं है.’’

‘‘उफ, यानी कल का दिन भी बरबाद हो जाएगा.’’

मंजरी यह देख कर हैरान थी कि ऐसे कर्मचारियों के बूते पूरी भारतीय रेलवे कैसे चल रही है, जो विश्व का दूसरा सब से बड़ा रेल नेटवर्क है, पर जब पूरी व्यवस्था ही अंदर तक सड़ चुकी हो, तब किसी से अनुशासन की अपेक्षा करना व्यर्थ है.

मंजरी के सामने अब पूरे सरकारी तंत्र की बखिया खुल चुकी थी. उसे समझ में आ गया था कि देश के कर्मचारी काहिली और अकर्मण्यता के रंग में इतने गहरे रंग गए हैं कि अब उन पर किसी बात का असर नहीं होता.

मंजरी का सिर फटा जा रहा था. अपने ही घर में 2 दिनों से न वह चैन से बैठ पा रही थी, न लेट पा रही थी. 2 घंटे के काम में 2 दिन तो बरबाद हो चुके थे और जाने कितने दिन अभी और लगने हैं. जय प्रजातंत्र, जय सरकारी तंत्र.

रेखा खंडेलवाल    

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