इन दिनों वसंत के आगमन की सूचना प्राइवेट स्कूल देने लगे हैं. ज्यादा से ज्यादा बच्चों के ऐडमिशन पाने के फेर में बड़ेबड़े रंगीन पोस्टर व कटआउट शहर के हर कोने में लगे मिलते हैं जिन में इन स्कूलों की आलीशान बिल्डिंग, एसी रूम, स्कूल में स्विमिंग पूल, घुड़सवारी, जिम आदि का मोटेमोटे अक्षरों में गुणगान किया होता है.

इन स्कूलों में मोटी कमाई करने का सुनहरा मौका होता है ऐडमिशन के समय मुंहमांगी रकम मांगना. दाखिले के समय प्रबंधक कमेटी की पूरी कोशिश होती है कि कोई भी सीट खाली न छूटने पाए. गरीब तबके के लोग तो स्कूल का प्रोस्पैक्ट्स खरीदने की हिम्मत भी नहीं कर सकते जिस के अंत में लिखा होता है कि स्कूल के विकास के लिए आप कितना डोनेशन दे सकते हैं. यह डोनेशन 1 लाख रुपए से ज्यादा हो सकता है. देने वाले देते ही हैं.

वैसे भी एक सीट के लिए सैकड़ों लोग लाइन में लगे होते हैं. अब सरकारी स्कूलों में अपना बच्चा कोई समझदार व समर्थ आदमी नहीं डालता. सब जानते हैं कि 15 हजार रुपए पगार पा कर भी मास्टरनी महोदया पूरा दिन या तो स्वेटर बुनती रहती है या वोटर लिस्टें रिवाइज करती रहती है. प्राइवेट स्कूल में टीचर से पिं्रसिपल पूरा दिन खींच कर काम लेती है. तभी तो ये स्कूल अच्छे परिणाम भी दिखाते हैं.
अच्छे स्कूल की तलाश में आजकल हर कोई रहता है. मेरे एक दोस्त का बेटा अभी 2 साल का भी नहीं था कि दोस्त ने 7 स्कूलों के पिं्रसिपलों से मुलाकात कर ली मगर हर जगह उसे निराशा ही हाथ लगी. हमारे एक दो नंबर की कमाई वाले अमीर पड़ोसी ने मिडटर्म में ही अपने बच्चे को उस के वर्तमान स्कूल से हटा कर एक हाईफाई स्कूल में ऐडमिशन कराया. हमें बड़ी हैरानी हुई. इतना खर्च करने के पीछे क्या कारण हो सकता है, हम ने पूछने की हिम्मत कर ही डाली.

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