“अच्छा…… तो आपको अपने बेटे की गलती नहीं दिखी, मगर मेरी दिख गई, क्योंकि मैं पराए घर की हूँ इसलिए ? और संस्कार आपने कैसे दिये हैं अपने बेटे को ? बेईमानी करने की?”रचना की बात पर मालती का मुंह खुला का खुला रह गया ! रचना अपनी सास का हमेशा से आदर करती आई थी. लेकिन आज उसके ऐसे तेवर देख वह आवक रह गई ! मालती भी अपनी बहू को बेटी से कम प्यार नहीं करती थी. वह तो गुस्से से उसके मुंह अपशब्द निकल गये, वरना,कभी वह उसे कुछ उल्टा-सीधा नहीं बोलती थी. हालांकि, अपने बेटे को भी उसने डांटा, फिर भी रचना को लग रहा है कि मालती ने उसके साथ पक्षपात किया. बेटे की लगती को तो नजरंदाज कर दिया और सारी गलती बहू के सिर मढ़ दी.
रचना को बुरा मानते देख मालती ने उसे समझना चाहा कि वह इस घर की बहू है. घर की इज्जत है, अगर वही इस तरह से व्यवहार करेगी, तो लोग क्या कहेंगे ? मगर रचना कहने लगी कि वह उसे समझाने के बजाय अपने बेटे को समझाये, तो ज्यादा बेहतर होगा. रचना को अपनी माँ से बहस लगाते देख, निखिल का पारा और चढ़ गया.
बोला,“देखो, देखो माँ, कैसे आपसे भी मुंह लगा रही है ये . धक्का दिया इसने पहले मुझे . छोटी सी बात को इतना बड़ा बना दिया और घर में बवाल मचा दिया. और तेवर तो देखों इसके ? खबरदार जो मेरी माँ से बत्तमीजी की तो! “ उंगली दिखाते हुए निखिल बोला, तो कस कर उसने उसकी उंगली मरोड़ दी और बोली।
“खबरदार अपने पास रखों, समझे और आगे से उंगली-टिंगली मत दिखाना मुझे, नहीं तो तोड़ दूँगी। और तुमने, तुमने क्या किया ? एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी……..तुमने धक्का नहीं दिया मुझे, बल्कि ज्यादा ज़ोर से दिया और मुझे चोट लगते-लगते बची? और मेरे माँबाप पर क्यों गए ? मेरे माँबाप क्या हैं मेरे लिए और उन्होंने मुझे कैसे संस्कार दिये हैं, यह मुझे तुम सब से जानने की जरूरत नहीं है, समझे ?” अपनी सास की तरफ देखते हुए रचना बोली. “और एक बात जान लो, मैं कोई तुम्हारी दासी-पोसी नहीं हूँ. तुम्हारे टुकड़ों पर नहीं पलती हूँ जो तुम्हारी धौंस सहूँगी . मैं खुद इतना कमा लेती हूँ की मुझे तुम्हारे पैसों की कोई जरूरत नहीं है. तुम्हारे पैसों की जरूरत होगी तुम्हारे परिवार को” रचना की बात पर निखिल तिलमिला उठा और कस कर एक तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया. एक तो वैसे ही उसने उसकी उंगली मरोड़ दी तो दर्द हो रहा था, ऊपर से बकवास पर बकवास किए जा रही थी तो कितना सहता वो? लगा दिया एक तमाचा।
लेकिन यह बात रचना के बर्दाश्त के बाहर हो गया. क्रोध के मारे उसका मुंह लाल हो गया। उसने भी जो सामान सामने पड़ा था, उठाकर निखिल की ओर ज़ोर से फेंका। निखिल ने हाथ आगे कर रोक लिया, वरना उसका सिर तो फटना ही था आज. मालती को समझ नहीं आ रहा था कि करें ? कैसे रोकें इनके झगड़े को ?दोनों के झगड़े की आवाजें सुन आसपड़ोस के लोग भी कान लगा कर सुनने लगें. अब लोगों की तो आदत ही होती मज़ा लेने की. किसी के घर झगड़ा हुआ नहीं, पहुँच जाते हैं तमाशा देखने. मालती जितना दोनों को शांत करने का प्रयास कर रही थी, मामला उतना ही बिगड़ता जा रहा था. रचना कहने लगी कि वह निखिल के खिलाफ हिंसा का केस करेगी. बतलाएगि पुलिस को की कैसे उसके पति ने उसे मारा-पीटा, उस पर जुल्म किया. और निखिल कह रहा था कि कौन डरता है पुलिस से. बुलाओ पुलिस को. दिखाऊँगा कि कैसे रचना ने उसे अपने नाखून से नोच डाला है. धक्का दिया और सिर भी फोड़ने जा रही थी,यह भी वह पुलिस को बताएगा. ‘अरे, पुरुष एक थप्पड़ भी चला दे, तो हिंसा हो जाता है और औरत नोच-खसोट ले,पति का सिर फोड़ दे, तो कुछ नहीं?’ दोनों के चिल्लम-चिल्ली से लग रहा था मालती के दोनों कान फट कर उड़ जाएंगे. उसने अपने दोनों हाथ से कान दबा लिए. लेकिन आवाज फिर भी रुक नहीं रहे थे.
गुस्से से फनफनाई रचना 112 नंबर पर कॉल करने ही जा रही थी कि मालती ने उसके हाथ से फोन छीन लिया और घर की इज्जत की दुहाई देने लगी. मालती के हाथ जोड़ने पर रुकी थी वह, मगर उसका फैसला बदला नहीं था. उसका गुस्सा तो अब भी सातवें आसमान पर विराजमान था. कहने लगी,‘लॉकडाउन टूटते ही वह निखिल पर हिंसा का केस करेगी. जेल भिजवा कर रहेगी उसे. फोन कर वह अपने मायके वालों को सब कुछ बताना चाहती थी, लेकिन इस लॉकडाउन में वह कर भी क्या सकते थे, सिवाय परेशान होने के ? इसलिए उन्हें न बताना ही उसे सही लगा.
क्रोध के मारे हवा से हिलते पत्ते की भाँति कांपती हुए वह अपने कमरे में जाकर अंदर से दरवाजा लगा लिया। क्योंकि वह निखिल का मुंह भी नहीं देखना चाहती थी. मजबूरन निखिल को सोफ़े पर सोना पड़ा, पर एक तो गर्मी ऊपर से मच्छर उसे सोने भी नहीं दे रहा था. काट-काट कर उसका बुरा हाल किए हुए था. गुस्सा आ रहा था उसे खुद पर, की क्यों उसने ऐसी लड़की को अपनी जीवन संगनी बनाया जो बातबात पर उससे लड़ती-झगड़ती रहती है ?‘नहीं, अब मैं भी नहीं रह सकता ऐसे तुनकमिजाजी लकड़ी के साथ. छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बनकर घर मे हँगामा कर देती है. हाँ, मैंने बेईमानी की, तो क्या हो गया ? बचपन में भी करता था तो क्या हो गया ? बड़ा पुलिस की धमकी दे रही है ! पुलिस से वे लोग डरते हैं जो गलत करते हैं और मैंने कोई गलती नहीं की, यह मैं जनाता हूँ . ?देखो, उसके नाखून के निशान अभी हैं मेरे हाथ पर, तो क्या यह हिंसा नहीं हुआ ? कितना खून निकल आया था मेरा, काश फोटो खींच लेता, तो पुलिस को दिखाता, फिर देखता पुलिस किसे जेल भेजती है. वैसे, जेल भी चला जाऊँ तो ठीक, कम से कम इस औरत से दूर तो रहूँगा’अपने आप में ही सोचते-सोचते निखिल की आँखें जाने कब लग गई.
उधर मालती के पैरों के नीचे से जमीन सरकने लगी थी. सोच कर ही वह कांप रही थीकि अगर बहू ने पुलिस में कम्पलेन कर दिया तो क्या होगा ?माँ-बेटे को जेल तो होंगी हीं, सालों की कमाई इज्जत भीमिट्टी में मिल जाएगी. लोग हसेंगे सो अलग.
किसी तरह मालती रचना को समझा-बूझकर उसका गुस्सा शांत करना चाह रही थी. निखिल से वह माफी मांगवाने को भी तैयार थी. मगर रचना कुछ सुने तब तो. मालती को यह सोचकर धकधकी उठ रही थी कि कल अगर उसके दरवाजे पर पुलिस आ गई और सारी बात मुहल्ले की औरतों को के सामने आ गई, तो क्या होगा ?‘वह तो खुश ही होंगी . उनकी आत्मा तो कब से हमारे घर के बारे में कुछ ऐसा-वैसा सुनने को बेचैन है. इस मुहल्ले में कुछ ऐसी कुटिल महिला भी हैं, जो मुझसे, मेरी बहू से जलती हैं, क्योंकि सुंदरता के साथ मेरी बहू कमाऊ जो है. मुझे मान-सम्मान भी देती है, जो उनकी बहुए नहीं देती हैं उन्हें, तो ईर्ष्या तो होगी ही न ? मेरी बहू गाड़ी से ऑफिस आती जाती है, तो कैसे सब देख जल-भून जाती हैं. जानती हूँ हाल-चाल पूछने के बहाने आकर मेरा दिल और जलाएगी. इन दुष्टटिनियों को हमारी बेबसी पर ताली बजने का मौका मिल जाएगा. आखिर जलती जो हैं वे लोग मुझसे’सोचते-सोचते जाने कब मालती की भी आँखें लग गई.
इधर रचना का गुस्सा अभी भी उफान पर था. गुस्से में एक तो खाया नहीं जाता है और खाली पेट गुस्सा और बढ़ता जाता है. कई बार मालती खाने की थाली ले कर आई भी, पर रचना ने उसे दरवाजे से ही लौटा दिया था, यह बोलकर कि उसे भूख नहीं है. जब भूख लगेगी, खुद ही खा लेगी.
रचना और निखिल एक कंपनी में साथ काम करते थे. दोस्ती के बाद दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए और फिर धीरे-धीरे उनका प्यार परवान चढ़ने लगा. जब उनका एक दिन भी न मिलना उन्हें बेचैन करने लगा, तो दोनों ने शादी करने का फैसला ले लिया. रचना के माता-पिता को तो कोई समस्या नहीं थी इस रिश्ते से, मगर मालती अपने एकलौते बेटे का विवाह किसी गैर जातिय लड़की से नहीं करना चाहती थी. मगर बेटे के प्यार के आगे वह झुक गई और जब वह रचना से मिली, तो उसके अच्छे व्यवहार ने उसे और पिघला दिया. जरा कड़क स्वभाव की रचना दिल की कितनी अच्छी है यह बात शादी के कुछ दिनों बाद ही मालती को मालूम पड़ गया.