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अपने पीठ पीछे तकिया टिकाये पलंग के किनारे बैठी रचना आराम सेमैगज़ीन पढ़ रही थी.  बड़ा सुकून मिल रहा था उसे अपनी मन-पसंद मैगज़ीन पढ़ते हुए.   वरना, तो रोज उसे कहाँ समय मिल पाता था .  सुबह हड़बड़ी में ऑफिस निकल जाती थी और फिर रात के 8 बजे ही घर वापस आती थी.  थक कर इतना चूर हो जाती कि फिर कहाँ उसे कुछ पढ़ने लिखने का मन  होता था.  एक संडे की छुट्टी में घर-बाहर के ही इतने काम होते थे कि मैगज़ीन पढ़ना तो दूर, झाँकने तक का समय नहीं मिल पाता था उसे.  अखबार वाला हर महीने का मैगज़ीन दे जरूर जाता था, पर वह उलट-पुलट कर देख भर लेती थी.  लेकिन अब जब इस लॉकडाउन मेंउसे घर में रहने का मौका मिला है,तोवह सारे मैगज़ीन पढ़ लेना चाहती है.

लेकिन निखिल उसे पढ़ने दे तब न .  कब उसे परेशान किए जा रहा है.  कुछ-कुछ लिख कर कागज के बॉल बना-बना कर उस पर फेंक रहा है, ताकि वह डिस्टर्ब हो जाए और पढे ही न. इस बार फिर निखिल ने उस पर कागज का बॉल बनाकर फेंका तो वह तिलमिला उठी.

“निखिल...........चीखते हुए रचना बोली, “क्या है तुम्हें ?क्यों मुझे परेशान कर रहे हो ?एक और बॉल फेंका न तो बताती हूँ. “ लेकिन निखिल को तो आज बदमाशी सूझी थी, सो उसने फिर रचना के ऊपर कागज का बॉल फेंका. “प्लीज, निखिल, पढ़ने दो न मुझे.  वैसे भी मुझे कुछ पढ़ने-लिखने का समय नहीं मिल पाता है और अभी मिला है तो तुम मुझे परेशान कर रहे हो.  मैं तो कहती हूँ तुम भी पढ़ने की आदत बना लो, अच्छा टाइम पास हो जाएगा और कुछ सीखने को भी मिलगे.  ये लो”  एक मैगज़ीन उसकी तरफ बढ़ते हुए रचना बोली.

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