लेखक-दीपा डिंगोलिया 

आज सोसाइटी में सुबह-सुबह मीटिंग थी.सब लोग इकट्ठा थे."करोना के लिए आप लोग जितना योगदान कर सकते हैं उतना ही अच्छा है. सारी राशि प्रधानमंत्री कोष में ही जायेगी"-सोसाइटी के मैनेजर गुप्ता जी माइक पर जोर-जोर से बोल रहे थे.

सब बढ़ चढ़ कर दान बॉक्स में कैश और चेक डाल रहे थे और खुद को दुनिया का सबसे बड़ा दानवीर समझ फूले नहीं समा रहे थे. कुछ तो स्वयं को सोसाइटी का सबसे अमीर व्यक्ति भी साबित कर चुके थे.

जब पूरा कार्यक्रम ख़त्म हुआ तब हिम्मत कर सालों से काम कर रहा सोसाइटी का सफाई कर्मचारी रामदीन अमीरों व ताजे-ताजे दानवीर लोगों से घिरे गुप्ता जी के पास पहुँचा और बोला -"साहब मैं भी कुछ देना चाहता हूँ इस कोष में".

गुप्ता जी और दूसरे लोग उसे घूरते हुए बोले -"तुम…तुम क्या दे सकते हो ? तुम्हारे पास है ही क्या ? तुम खुद को और अपने बीवी-बच्चों को ही दो टाइम की रोटी खिला लो वो ही बहुत है".

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"साहब मैं अब छुट्टी नहीं लूँगा और इतवार को भी सफाई करूँगा जिससे सोसाइटी में गन्दगी न हो व सभी लोग सुरक्षित रहें . कोष में सिर्फ पैसा ही नहीं इंसान अपनी सेवा भी तो दान में दे कर अपना योगदान दे सकता है.सेवा कैसी भी हो पुण्य तो सबको बराबर ही मिलता है न साहब"-रामदीन ने कहा.

रामदीन की बात सुन नए-नए दानवीरों के मुहँ की चमक फीकी पड़ गयी.

तभी सोसाइटी की बुजुर्ग माता जी बोलीं -"वो सब तो ठीक है पर कुछ हिस्सा पूजा,पाठ और दान में भी लगायें  गुप्ता जी. दो दिन बाद महायज्ञ का आयोजन रखिये सोसाइटी के मंदिर में.

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