कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

वक्त बीतता रहा, प्यार गहराता रहा. इन डेढ़-दो सालों में नीलू शरद के बहुत करीब आ चुकी थी. दोनों कभी रेस्टोरेंट में, कभी किसी बाग के एकान्त कोने में या फिर रातों को छुप-छुप कर छत पर मिलने लगे. किसी ने सच ही कहा है कि इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते. उड़ते-उड़ते बात नीलमणि के पिता विजय सिंह के कानों तक भी पहुंच गयी कि उनकी बेटी शरद के साथ बाहर घूमती फिरती है. विजय सिंह के दिल को बड़ी ठेस पहुंची. बात बाहर वालों के मुंह से उनके कान तक पहुंची थी, इसलिए तकलीफ ज्यादा हुई. मगर बात का बतंगड़ न बने और घर की इज़्ज़त बची रहे इसलिए गुस्से से काम न लेकर उन्होंने दोनों को सामने बिठा कर सच्चाई जाननी चाही. दोनों शर्मिन्दा थे. नीलू ने पिता के सामने सिर झुकाकर सच्चाई कबूल की और यह भी कि वह और शरद एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और उनकी इजाज़त से शादी करना चाहते हैं. शरद ने भी विजय सिंह के पैर पकड़ कर उनसे नीलू का हाथ मांगा. कहा कि वह नीलू को बहुत खुश रखेगा. किसी बात की कमी नहीं होने देगा. वह उससे बहुत प्यार करता है.

स्थिति की गम्भीरता को भांपते हुए विजय सिंह ने दोनों की शादी के लिए हामी भर दी. शरद तो उन्हें पहले ही बहुत पसन्द था, मगर दामाद के रूप में उन्होंने अभी तक कोई कल्पना नहीं की थी. अब जब उसका चेहरा देखा तो लगा कि नीलू के लिए वह बहुत अच्छा पति साबित होगा. खास बात यह थी कि उनकी लाडली उससे प्यार करती थी. उनकी लाडली ने उसे चुना था. अब डॉक्टर-इंजीनियर न हुआ तो क्या हुआ... कमा तो अच्छा ही रहा है और फिर उसके आगे-पीछे भी कोई नहीं है... सास-ननद का कोई झंझट नीलू को नहीं झेलना पड़ेगा... सबसे बड़ी बात तो यह थी कि शादी के बाद उनकी लाडली बेटी उनके पास ही रहेगी और उन दोनों को बुढ़ापा अकेले नहीं काटना पड़ेगा. शरद ने खुशी-खुशी घर जमाई बनना स्वीकार कर लिया था. ऐसे में विजय सिंह और उनकी पत्नी को दामाद के रूप में एक बेटा भी मिल रहा था. दोनों की शादी के लिए ‘न’ की तो कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...