नीलमणि तब ग्रेजुएशन के द्वितीय वर्ष में थी. पढ़ाई में तो तेज थी ही, सुन्दरता में भी किसी रूपसी राजकुमारी से कम नहीं लगती थी. गोरी रंगत, लम्बे रेशमी बाल, ऊंचा कद, छरहरा बदन और सबसे खूबसूरत थीं उसकी आंखें. उसकी नीली-हरी आंखों के कारण ही मां-बाप ने उसका नाम नीलमणि रखा था. विजय सिंह और उनकी पत्नी शारदा की इकलौती संतान थी नीलमणि. पूरे लाड-प्यार में पली बच्ची. गांव में विजय सिंह के पास काफी खेतीबाड़ी थी. बड़ा नाम-सम्मान भी था. चाहते तो ठाठ से गांव वाली हवेली में रहते, मगर बीए की डिग्री प्राप्त विजय सिंह को जब इलाहाबाद की एक इन्शोरेंस कम्पनी से नौकरी का ऑफर आया तो गांव वाली जमीनें और हवेली छोटे भाई के हवाले कर पत्नी सहित इलाहाबाद चले आये. यहां उन्होंने चार कमरों का बड़ा मकान ले लिया. दोनों पति-पत्नी आराम से रहने लगे. पैसे की तंगी कभी रही नहीं, मगर एक कमी थी जो दूर नहीं हो रही थी. उनके घर का आंगन बच्चे की किलकारी के बिना सूना-सूना सा था.
आखिर शादी के बारह बरस बाद जब बड़ी मिन्नत-आरजू और दवा-दारू के बाद विजय सिंह और शारदा को नीलमणि के रूप में कन्या-रत्न की प्राप्ति हुई तो दोनों की खुशियों का तो जैसे कोई ठिकाना ही न रहा. पूरे मोहल्ले में देसी घी की मिठाईयां बंटवायीं गयीं. खूब गाना-बजाना हुआ. किन्नरों की टोलियों को मुट्ठी भर-भर के रुपये बांटे थे विजय सिंह ने और खूब दुआएं ली थीं. उनके घर में तो जैसे साक्षात लक्ष्मी आयी थी. इतनी सुन्दर कन्या पाकर विजय सिंह निहाल हुए जाते थे. दूध सी गोरी, रेशम सी कोमल और नीलम सी नीली-नीली आंखों वाली बच्ची को देखते ही उन्होंने उसका नाम नीलमणि रख दिया था. विजय और शारदा के दिन-रात अपनी बच्ची को पालने-पोसने में गुजरने लगे. नीलमणि को प्यार से घर में सब नीलू कहकर पुकारते थे. नीलू पापा की बड़ी दुलारी थी. उसकी अच्छी-बुुरी, सही-गलत सारी मांगें वह हंस-हंसकर पूरी करते थे. अपनी लाडली बेटी की आंखों में आंसू का एक कतरा भी विजय सिंह बर्दाश्त नहीं कर पाते थे. उनकी बड़ी इच्छा थी कि वह अपनी बेटी को खूब पढ़ाएं और किसी डॉक्टर या इंजीनियर से उसका ब्याह कराएं. नीलमणि पढ़ाई में बहुत अच्छी थी. हर कक्षा में अव्वल. हाईस्कूल और इंटरमीडियट की परीक्षाएं भी उसने बहुत अच्छे अंकों में पास कीं. कॉलेज में आने के बाद जहां उसकी सहेलियां फैशनपरस्ती की चपेट में आकर पढ़ाई में पिछड़ रही थीं, वहीं नीलमणि पर कॉलेज के खुले-खुले वातावरण का कोई गलत प्रभाव नहीं पड़ा था. पढ़ाई के प्रति उसका जुनून पहले जैसा ही था, बस जरा अंग्रेजी विषय में उसे थोड़ी परेशानी थी. अंग्रेजी के बड़े साहित्यकारों के लेख, कविताएं और कहानियां समझने में थोड़ी परेशानी होती थी, पर उसने भी जिद पकड़ ली थी कि ग्रेजुएशन की पढ़ाई वह अंग्रेजी विषय लेकर ही करेगी.
उन्हीं दिनों की बात है जब एक दिन शरद किराये का कमरा ढूंढते-ढूंढते उसके घर आया था. मोहल्ले में किसी ने उसको बताया था कि विजय सिंह के मकान में ऊपर वाला कमरा खाली पड़ा है. किराया भी कम है. सो शरद पूछते हुए चला आया था. लम्बी देह, गोरी रंगत, गोल चेहरे पर पतली-पतली मूंछें, कुल मिलाकर एक कड़ियल नौजवान था. पूरा नाम था – शरद सिंह चौहान. रामपुर से आया था. इलाहाबाद की एक प्राइवेट फर्म में सेल्स मैनेजर के पद पर नियुक्ति मिली थी. अकेला था. दो साल पहले मां-बाप की एक ट्रेन दुर्घटना में मौत हो गयी थी. रामपुर में मां-बाप की यादें जीने नहीं देती थीं, तो अपना शहर छोड़ कर यहां नौकरी तलाश ली थी. उसके मुख से उसकी यह करुण कथा सुनकर विजय सिंह का हृदय पसीज गया. उन्होंने अपनी पत्नी शारदा से ऊपर वाले कमरे की चाबी मंगवा कर उसके हाथ पर रख दी. पहले एक परिवार उस कमरे में किराये पर रहता था. उनके जाने के बाद से ही वह कमरा खाली पड़ा था. थोड़ी झाड़पोछ की जरूरत थी, जिसके लिए उन्होंने शारदा को बोल दिया था. विजय सिंह को शरद बहुत ही संस्कारी और सलीकेदार लड़का लगा था. फिर उसकी नौकरी भी अच्छी थी. मैनेजर के पद पर कार्यरत था. लम्बे समय तक इलाहाबाद में रहने वाला था. उसने किराये में भी किसी तरह की कटौती की बात नहीं की थी, वरना किरायेदार तो किराया सुनते ही मोलभाव करने लगते हैं. विजय सिंह के मन में भी लालच था, उनका भी रिटायरमेंट करीब था, चलो इसी बहाने किराये के दस हजार रुपये हर महीने मिलते रहेंगे, फिर अपनी ही जात-धर्म का लड़का है, पढ़ा-लिखा और बातचीत में सभ्य-सुशील है. शरद के पास ज्यादा सामान भी नहीं था. एक बैग और एक बड़ा सूटकेस ही था. दस हजार किराया और दस हजार रुपये सिक्योरिटी के देकर उसने चाबी ले ली.
शाम को नीलू कौलेज से लौटी तो आंगन में पिता के साथ बैठे आगन्तुक को देखकर सकुचा गयी. शरद को धीरे से नमस्ते करके वह अपने कमरे की तरफ मुड़ी ही थी कि पिता ने उसको रोक कर शरद से उसका परिचय करवाया. नीलमणि को पहली ही नजर में शरद की पर्सनैलिटी भा गयी थी. उसके चेहरे की मासूमियत और झुकी-झुकी नजरें उसे बहुत भली लगी थी. वरना कॉलेज में तो नीलू को देखकर लड़के अपनी पलकें झपकाना भूल जाते थे. मां से नीलू को पता चला कि शरद ऊपर वाले कमरे में रहेगा. वह कमरा नीलू के कमरे के ठीक ऊपर था और सीढ़ियां उसके कमरे के बगल से होकर जाती थीं.
चार-पांच दिन तक तो शरद के चाय-खाने का इंतजाम नीलू की मां ने ही किया, फिर शरद ने पास के होटल से अपने खाने का बंदोबस्त कर लिया. हां, सुबह की चाय जरूर कभी नीलू की मां तो कभी नीलू उसके कमरे में पहुंचा जाती थीं. नीलू और शरद के बीच काफी समय तक सकुचाहट बनी रही थी. सुबह-सुबह नीलू शरमाई-शरमाई सी उसके कमरे के दरवाजे पर आकर प्याला पकड़ा जाती थी और वह भी नजरें नीचे किये चुपचाप प्याला उसके हाथ से ले लेता था. दोनों के बीच बस हां… हूं… तक ही बात सीमित थी. सुबह का वक्त ही दोनों का आमना-सामना होता था. विजय सिंह के घर में नीचे के आंगन के कोने में ही टायलेट-बाथरूम बना हुआ था. सुबह नीलू को भी कौलेज जाने की जल्दी होती थी और विजय सिंह और शरद को भी निकलना होता था. शुरू के दिनों में जब शरद तौलिया कंधे पर डाले बाथरूम की ओर आता तो पता चलता कि नीलू अन्दर है, कभी नीलू को जल्दी होती तो शरद अन्दर नहा रहा होता. कभी-कभी विजय सिंह भी बाथरूम के आगे लेफ्ट-राइट करते नजर आते, मगर धीरे-धीरे सब एडजस्ट हो गया. नीलू सुबह जल्दी उठने लगी. सात बजे से पहले ही वह नित्यक्रम निपटा कर बाथरूम खाली कर देती थी. इससे विजय सिंह और शरद दोनों को आसानी हो गयी. नीलू के जल्दी उठने से उसकी मां को भी किचेन में थोड़ी मदद मिलने लगी. एक बाहरी व्यक्ति के आ जाने से घर में कुछ-कुछ दूसरे बदलाव भी शुरू हो गये थे. नीलू कॉलेज से लौट कर पूरे घर को थोड़ा टाइडी कर देती थी. सारी चीजें अब जगह पर नजर आती थीं. किसी चीज पर धूल का कण भी नहीं दिखता था. कपड़े-तौलिये पहले आंगन में कपड़े सुखाने की रस्सी पर ही लटके रहते थे, मगर अब नीलू घर आते ही सारे कपड़े तह करके अलमारी में रख देती थी. खाने की मेज पर रखा गुलदान भी अब हमेशा ताजे फूलों से सजा रहता था. नीलू लौटते समय कुछ फूल पार्क से तोड़ लाती थी. नीलू अपना कमरा भी खूब साफ-सुथरा और सजा कर रखने लगी थी. दरअसल शरद के कमरे में जाने के लिए सीढ़ियां नीलू के कमरे के बगल से ही जाती थीं और उसके साथ लगी बड़ी सी खिड़की से नीलू के कमरे का पूरा दृश्य साफ दिखता था. नीलू नहीं चाहती थी कि शरद उसके कमरे को कभी गंदा पड़ा देखे. इसलिए वह हर चीज करीने से सजा कर रखने लगी थी. साफ और सुन्दर-चटक रंगों वाली बेडशीट बिस्तर पर डालने लगी थी. यह बदलाव इस बात का संकेत थे कि नीलू शरद की पर्सनेलिटी से प्रभावित थी.