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रविवार की सुबह सचिन बगीचे में पौधों की कटाईछंटाई कर रहा था कि उस का सहकर्मी निमेष आ गया. ‘‘अगले शनिवार को मेरे मम्मीपापा की शादी की 50वीं वर्षगांठ की दावत है लेकव्यू क्लब में, उसी का निमंत्रण ले कर आया हूं,

‘‘अंदर होगी, यहीं बैठें या अंदर चलें?’’ सचिन ने पूछा. ‘‘बैठने का समय नहीं है, कई जगह जाना है अभी.’’ ‘‘बहुत बड़ी दावत है क्या?’’ ‘‘हां, सब रिश्तेदार, मम्मीपापा के सभी जानपहचान वाले और हम सब बहनभाइयों के दोस्त आ रहे हैं,’’ निमेष उत्साह से बोला, ‘‘सरप्राइज पार्टी है मम्मीपापा के लिए.’’

सचिन ने हसरत से निमेष की ओर देखा, ‘काश, वह और मीरा भी इसी उत्साह से अपने मम्मीपापा के लिए ऐसा कुछ कर सकते.’

निमेष हाथ में पकड़े कवर में से कार्ड निकालने लगा तो कुछ कार्ड जमीन पर गिर गए. सचिन उठाने को नीचे ?ाका तो एक कार्ड पर लिखे नामपते को देख कर चौंक पड़ा.

‘‘ब्रह्मप्रकाश को कैसे जानते हो तुम?’’ ‘‘पापा के ब्रिज ग्रुप के दोस्त हैं. मैं चलता हूं सचिन, शनिवार को आना मत भूलना,’’ सचिन को कुछ सोचते देख कर उस ने जोड़ा, ‘‘न आने का बहाना सोच रहा है क्या?’’

‘‘नहीं यार, मैं सोच रहा था कि अगर मम्मी को भी ले आता तो,’’ सचिन ने हिचकिचाते हुए कहा. ‘‘अरे, मैं भी कैसा बेवकूफ हूं. आंटी को तो भूल ही गया,’’ निमेष ने माथा पीटा, ‘‘आंटी से मिल कर आने का आग्रह करता हूं.’’

‘‘अभी बुलाता हूं मम्मी को,’’ सचिन लपक कर अंदर चला गया.निमेष ने जल्दी से लिफाफे पर सचिन के नाम से पहले विद्या आंटी लिख दिया. तभी रूपम भी आ गई. सब से आने का अनुरोध कर के निमेष चला गया.

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