हरीश बाबू एकदम स्तब्ध रह गए. ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था. उम्र भी आजकल के हिसाब से कुछ भी नहीं. अभी 1 वर्ष ही हुआ है सेवानिवृत्त हुए. 62वां वर्ष चल रहा है उन का. निर्मला उन से पूरे 5 वर्ष छोटी है. पिछले महीने जन्मदिन मनाया है धूमधाम से. सभी बच्चे आए थे, 2 बेटे, 1 बेटी. सभी संपन्न, प्रतिष्ठित और सुखी.
20 वर्ष की उम्र में निर्मला को ले कर आए थे गठजोड़े में बांध. वह 15 वर्ष की पहाड़ी नदी जैसी अल्हड़ किशोरी थी. गांव के माहौल की बात भूल, पल्ला सिर से उतार कर कमर में खोंस के गिलहरी की तरह चढ़ जाती थी पेड़ पर कच्चे आम तोड़ने. अम्मा ने कभी डांटा नहीं, स्नेह से हंसती थीं. वही निर्मला सारा जीवन उन को समर्पित रह कर इस उम्र में हरीश बाबू के साथ विश्वासघात कर गई.
हरीश बाबू अपनी नौकरी में मस्त थे. पूरा घर तो निर्मला ने संभाल रखा था, बच्चों की शिक्षासंस्कार, आगे चल कर उन का विवाह. कभी भी हरीश बाबू को कुछ नहीं करना पड़ा. नतीजतन, परिवार के बच्चों में अच्छे संस्कार यानी मातापिता के प्रति आदरसम्मान, भाईबहनों में प्रेमलगाव, बहुओं में सब के प्रति अपनापन आज भी जीवित हैं. सारा जीवन व्यस्तता में निकल गया.
सेवानिवृत्ति के बाद सोच रहे थे कि भारतदर्शन पर निकल पड़ेंगे. यहां तो दोनों बेटों का सम्मिलित परिवार है और दोनों बहुओं में बहुत प्यार है. इसलिए घर में कोई असुविधा नहीं होगी. दोनों मिलबैठ चयन कर रहे थे कि पहले कहां जाएं- जंगल, पहाड़ या समुद्र. निर्णय ले भी नहीं पाए कि निर्मला के मन में बेईमानी आ गई और वह उन को छोड़ कर चली गई. हार्ट स्पैशलिस्ट बेटा भी कुछ नहीं कर पाया मां को बचाने के लिए. इस समय ही पत्नी की सब से ज्यादा जरूरत होती है और इसी समय में वह उन को छोड़ कर इतनी दूर चली गई कि उन की आवाज भी वहां नहीं पहुंच सकती.
वैसे तो भरापूरा घर है, 4 पोतापोती, 2 बेटे, 2 बहुएं. बेटी भी अब बच्चों की छुट्टी होते ही पापा के पास दौड़ी आती पर यह अकेलापन तो उन का अपना है, उसे कौन पूरा करेगा? सुबह सुनहरी धूप में शरीर सेंकते हरीश बाबू लौन में बैठे थे. बेंत की कुरसीमेज, हरे रंग की. निर्मला की पसंद बहुत ही सुंदर थी, मानो कलाकार की पसंद हो.
उन की पहली पोस्टिंग आगरा थी, दूसरी मथुरा और इसी आगरामथुरा राजमार्ग के बीच में लगभग 10 किलोमीटर अंदर गांव में उन की पैतृक हवेली है. वहां से ही बाइक से वे काम पर आतेजाते थे.
आगरे की एक अभिजात कालोनी में उन का सुंदर घर बहुत पीछे बना है. सभी बच्चे बड़े हो गए. अब उन को स्कूल में डालने की समस्या आई. निर्मला बच्चों को अच्छे संस्थान में पढ़ाना चाहती थी, हरीश बाबू भी आगरा में पढ़े थे और उस समय पोस्ंिटग भी आगरा में थी. निर्मला ने ही यह जगह पसंद की थी. साथसाथ 2 प्लौट ले लिए. उसे खुला हुआ बड़ा सा घर और साथ में बागबगीचा चाहिए था. उसी की पसंद का घर बना, उस ने ही यहां फलफूल, सब्जी की क्यारियां हिसाब से लगाईं जो अब भरी जवानी पर हैं. पैतृक गांव में विशाल संपत्ति है, अम्मा ने वर्षों तक संभाला. उन के बाद कई बार बेचने की बात चली पर निर्मला ने नहीं बेचने दिया. वह खुद ही गाड़ी ले कर गांव आतीजाती थी. पूरी संपत्ति, घर, सब की देखभाल खुद ही करती. पहले उन से भी अनुरोध करती चलने का, पर वे नहीं जाते तो फिर उस ने कहना छोड़ दिया था.
पुराना ड्राइवर राजू उसी गांव का बेटा है. निर्मला ही भुखमरी के कगार से उसे उठा कर लाई थी. 10वीं पास करा कर और ड्राइविंग सिखा कर उसे अपना ड्राइवर रख लिया. वह निर्मला के साथ रहता था. असल में उसे गांव के घर, खेत, खलिहान से लगाव था. दोएक दिन रह कर आती थी. ब्याह हो कर इसी घर में आई थी.
सभी बच्चों का जन्म गांव में ही हुआ. बीच में 2 वर्ष पति विदेश गए थे तब वह अम्मा के साथ गांव में ही रही थी. अम्मा से बहुत लगाव था उस को, अम्मा भी बेटी की तरह प्यार करती थीं उसे. पर अम्मा आगरा में आ कर कभी नहीं रहीं, उन का मन पड़ा रहता घर, खेत और भैंसों में. आती भी थीं तो बच्चों के जन्मदिन या तीजत्योहार पर, दिनभर रह कर शाम को लौट जातीं. घंटेभर का ही तो रास्ता है.
एक दिन बेटी माधुरी आई, दोनों बेटे दीपेंद्र और रूपेंद्र भी साथ में थे.
‘‘पापा, एक बात कहनी है.’’
‘‘कहो.’’
तीनों कुरसी पर बैठ गए. दीपेंद्र ने कहा, ‘‘पापा, अब गांव की संपत्ति की देखभाल तो मुश्किल है. मां हैं नहीं, आप तो कुछ जानते नहीं हैं गांव के विषय में. अम्माजी के बाद मां ने ही संभाल रखा था.’’
‘‘हां, यह समस्या तो है.’’
‘‘कुछ लोग उस को लेना चाहते हैं. वे लोग आ भी रहे हैं, फोन भी कर रहे हैं.’’
थोड़ा अवाक् हुए, ‘‘हवेली, खेत, बाग सब?’’
‘‘नहींनहीं, करोड़ों का है सबकुछ. टुकड़ों में, कोई हवेली, कोई खेत, कोई बाग…’’
‘‘तो क्या तुम लोग…’’
‘‘जी पापा, उस को कौन संभालेगा अब. हमारे पास न समय है न जानकारी या अनुभव. आप को अकेला छोड़ नहीं सकते. ऐसे में इतनी बड़ी संपत्ति को लावारिस रहने देना…’’
बच्चों की बातों के औचित्य को समझा उन्होंने, ‘‘ठीक ही है, पर सब चीजों का अलगअलग ही सही, मूल्यांकन होना चाहिए. नहीं तो दो कौड़ी भी नहीं देगा कोई, औनेपौने में सबकुछ छोड़ देना बुद्धिमानी नहीं है.’’
‘‘पर हम तो कुछ भी नहीं जानते जमीन, मकान के विषय में. 4 दुधारू भैंस हैं. राजू कह रहा था, हरी ग्वाला लेना चाहता है बच्चों समेत. एकएक भैंस 10-12 हजार रुपए की है. हरी ने कहा है, सब के लिए 10 हजार देगा.’’
‘‘पागल है क्या?’’
‘‘यही तो समस्या है. मां के न रहने से सब यही सोच रहे हैं कि हम लोगों को न तो कुछ पता है और न हम वहां रहने जा रहे हैं तो पानी के मोल ले लो.’’
‘‘तो फिर?’’
थोड़ा झिझकते हुए बेटी ने कहा, ‘‘पापा, आप 2-1 दिन के लिए जा कर वैल्यूएशन करा आएं तो…’’
‘‘पर मैं…मैं कैसे वैल्यूएशन करूंगा. मुझे तो गजभर जमीन का भी कोई अंदाजा नहीं.’’
‘‘हां, आप को नहीं पता, सतीश 2 दिन के लिए जा कर सब देखभाल कर दाम लगा देगा, कहां है?’’
‘‘सतीश…?’’
‘‘जी पापा, उस का तो काम ही यही है, जमीनजायदाद खरीदना, बेचना.’’
‘‘ठीक है, चला जाऊंगा. उसे रख कर भी क्या होगा.’’
‘‘राजू साथ रहेगा. कोई असुविधा नहीं होगी. वह गांव का ही बेटा है, इस समय क्या दाम चल रहा है, उसे पता है.’’
भोर में ही निकले हरीश बाबू. धूप चढ़ने से पहले पहुंच जाएंगे. घर के नौकर को साथ भेज रही थीं बहुएं कि 2-4 दिन रहना पड़े तो खानेपीने की उन को असुविधा न हो. पर राजू ने ही मना किया.
आगे पढ़ें- नौकर की घर पर भी बहुत जरूरत थी तो सब…