पूर्व कथा
पुरवा का पर्स चोर से वापस लाने में सुहास मदद करता है. इस तरह दोनों की जानपहचान होती है और मुलाकातें बढ़ कर प्यार में बदल जाती हैं. सुहास पुरवा को अपने घर ले जाता है. वह अपनी मां रजनीबाला और बहन श्वेता से उसे मिलवाता है. रजनीबाला को पुरवा अच्छी लगती है. उधर पुरवा सुहास को अपने पिता से मिलवाने अपने घर ले आती है तो उस के पिता सहाय साहब सुहास की काम के प्रति लगन देख कर खुश होते हैं.
इंजीनियर लड़के गौरव से श्वेता का विवाह तय हो जाता है. मिठाई के डब्बे के साथ बहन की सगाई का निमंत्रण ले कर सुहास सहाय साहब के घर जाता है. सहाय साहब सुहास की तारीफ करते हुए अपने मित्रों को बताते हैं कि वह उस के लिए मोटरपार्ट्स की दुकान खुलवा रहे हैं.
श्वेता की सगाई पर आए सहाय साहब के परिवार से मकरंद वर्मा परिवार के सभी सदस्य उत्साहपूर्वक मिलते हैं.
सुहास व्यापार शुरू कर देता है, लेकिन कई बार काम के लिए बंध कर बैठना उस के लिए मुश्किल हो जाता क्योंकि किसी भी जगह जम कर रह पाना उस के स्वभाव में नहीं था.
अंतत: श्वेता के विवाह का दिन आ जाता है. उस दिन पुरवा का सजाधजा रूप देख कर सुहास दीवाना हो जाता है. पुरवा से शीघ्र विवाह करने के लिए सुहास दुकान पर मन लगा कर काम करने लगता है और शीघ्र ही पुरवासुहास का धूमधाम से विवाह हो जाता है.
पुरवा महसूस कर रही थी कि सुहास का ध्यान समाजसेवा में अधिक रहता है. वह दूसरों की मदद के लिए दुकान पर भी ध्यान न देता.