पिछले अंक में आप ने पढ़ा था:
विशाल का बाप शराबी था. वह उस की मां को रोज पीटता था. विशाल को उस से नफरत हो गई थी. मांबाप के मरने के बाद विशाल रोजगार के लिए शहर आ गया और किराए पर रहने लगा. उस का मकान मालिक रघु अधेड़ उम्र का था, जो अपनी कमउम्र पत्नी तारा को जानवरों की तरह पीटता था. तारा की बेबसी देख कर विशाल उस का हमदर्द बन गया. धीरेधीरे तारा उस की ओर खिंचने लगी. कुछ दिनों बाद उन में संबंध बन गए.
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महल्ले के लोग रघु के बारे में अच्छी राय नहीं रखते थे. वे उसे मुंह लगाना भी पसंद नहीं करते थे.
तारा को रघु ने जोरजबरदस्ती और पैसे के दम पर हासिल किया था. तारा की मानें तो रघु से पैसे ले कर उस के गरीब मांबाप ने उसे रघु के हवाले कर दिया था. शादी की रस्में तो कहने को निभाई गई थीं.
तारा के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाने के बाद जब कोई परदा नहीं रहा तो विशाल ने उस के जिस्म पर मारपीट के निशान देखे.
‘‘यह इनसान तो मेरी उम्मीद से भी ज्यादा वहशी है. कब तक तुम यह सब सहती रहोगी?’’ विशाल ने पूछा.
‘‘जब तक मेरा नसीब चाहेगा,’’ एक ठंडी सांस भरते हुए तारा ने कहा.
‘‘नसीब को बदला भी जा सकता है,’’ विशाल बोला.
‘‘अगर सचमुच ऐसा हो सकता है तो बिना देरी किए अभी मेरा हाथ थामो और यहां से कहीं दूर ले चलो,’’ उम्मीद भरी नजरों से विशाल को देखते हुए तारा ने कहा.
‘‘नहीं, अभी सही समय नहीं है. इस के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा... जब तक मेरा कहीं और ठिकाना नहीं बन जाता,’’ विशाल बोला.