मणिकांत अमित की बात से सहमत थे. मुसकराते हुए कहा, ‘‘धन्यवाद अमित, तुम ने मुझे सही रास्ता दिखाया. अब मैं परिवार के बीच भी खुशियां ढूंढ़ लूंगा.’’ ‘‘मैं ने तुम्हें कोई रास्ता नहीं दिखाया. प्रत्येक व्यक्ति को खुशियों की मंजिल का पता होता है. बस, परिस्थितियों के भंवर में फंस कर वह अपना सही मार्ग भूल जाता है. मैं ने तो केवल तुम्हारी सोती हुई बुद्धि को जगाने का कार्य किया है.’’
उस रात पलंग पर लेटेलेटे उन्होंने पत्नी से सवाल किया, ‘‘क्या तुम इस बात पर विश्वास करती हो कि एक व्यक्ति किसी को उम्रभर एक ही जैसा प्यार कर सकता है?’’ ‘‘यह कैसा सवाल है? हम सभी एकदूसरे को प्यार करते हैं. इस में कौन सी नई बात है?’’ वह दूसरी तरफ करवट बदल कर बोली.
मणिकांत तड़प कर रह गए. उस से बात करना व्यर्थ था. हर बात को वह उलटे तरीके से लेती है. कभी प्यार से उन की बात को समझने की कोशिश नहीं करती. उन्होंने सिर टेढ़ा कर के पत्नी की अधखुली पीठ देखी, सुंदर और चिकनी पीठ. काश, इतनी ही सुंदर और मीठी उस की बोली होती. इस के बाद मणिकांत 2 भागों में बंट गए. एक भाग में वे स्वयं के साथ होते. उन्होंने कागज, कलम और पैंसिल हाथों में पकड़ ली. अपनी भावनाओं को अक्षरों और चित्रों के माध्यम से व्यक्त करने लगे. वे लेखन और चित्रकारी में इस कदर डूब जाते कि उन्हें घरपरिवार की उलझनें कहीं दिखाई ही नहीं देतीं. अब सब से हंस कर बोलते, पत्नी को आश्चर्य होता. जो आदमी हमेशा दुखीपरेशान रहता था, वह खुश कैसे रहने लगा है. इस बात से पत्नी की चिंता में बढ़ोतरी हो गई.
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