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ज्योंज्यों दीवाली निकट आती जा रही थी, अंजलि का हृदय अब की बार बाहरी चमकदमक देख कर भी न जाने क्यों खुश नहीं हो रहा था. यद्यपि घर के लोगों ने उस का दीवाली पर भरपूर स्वागत किया था, पर जब भी कोई उस से पूछता कि विवेक क्यों नहीं आया तो उस का मन बु झ जाता. उस ने  झूठ बोल कर कि अत्यधिक व्यस्तता के कारण वे नहीं आ पाएंगे, सब को आश्वस्त तो कर दिया पर उस के चेहरे की उदासी से सभी ने स्पष्ट भांप लिया था कि वह कुछ छिपा रही है, दोनों में कुछ अनबन है.

उसे स्वयं ही अपने ऊपर लज्जा आती. उसे लगता कि अब उस घर में उसे पहले वाली खुशी कभी नहीं मिल पाएगी. इसलिए कि यह घर उस के लिए पराया सा है. बाहरी जगमगाहट उस के लिए निरर्थक है.

बहुत प्रयत्न कर के वह अपनी आंतरिक वेदना को छिपाती रहती और हर प्रकार से खुश दिखने का प्रयत्न करती. दीवाली के निकट आने के साथ ही घर की रौनक बढ़ती जा रही थी. रात को कारों की पंक्तियां उस के पापा के घर के बाहर उन की शान का बखान करती दिखाई देतीं. वह भागभाग कर मेहमानों की अगवानी करती. उसे देखते ही लोग उस की खाली बगल में विवेक को ढूंढ़ते और सब की जिह्वा पर वही प्रश्न तैर जाता कि ‘विवेक कहां है?’ उस का अंतर्मन रो उठता. ऊपर से वह कितनी ही खुश दिखाई देने का प्रयत्न करती पर उसे लगता उस के दिल का एक कोना टूट कर कहीं अलग छिटक गया है विवेक के पास ही.

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