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अंजलि को यहां आ कर कितना सूना लगता है. जब से विवेक के साथ उस का विवाह हुआ है, उस की जिंदगी सूनी हो गई है. विवाह से पहले की जितनी भी कल्पनाएं और आकांक्षाएं थीं वे सब धूल में मिल गईं. उस ने कितने स्वप्न देखे थे विवेक के साथ आनंद मनाने के, पर वे सब एकदम मिट्टी में मिला दिए उस ने. उसे क्या मालूम था कि ऊपर से इतना खुशमिजाज दिखाई देने वाला व्यक्ति दिल का इतना कंजूस होगा कि उस की सारी आशाओं को पैरों तले रौंद कर रख देगा. उफ, क्या उस ने इसीलिए विवाह किया था कि दिनरात पैसेपैसे का हिसाबकिताब रखती रहे, दिन में 3 बार खाना बनाने की चिंता को सिर से बांधे रहे, उस पर भी हर समय बचतबचत का रोना सुने?

कई बार स्वयं उसे अपने किए पर रोना आता था. उस ने स्वयं ही तो विवेक को चाहा, उस से प्रेम किया और मातापिता की इच्छा के विरुद्ध उस से विवाह भी कर लिया. उस ने तो सोचा था कि विवेक डाक्टर है. ढाई लाख रुपए प्रतिमाह वेतन है. कुछ ऊपर की भी कमाई होगी. दोनों खूब मजे से रहेंगे. यदि यह पता होता कि विवेक के साथ ऐसी जिंदगी गुजारनी पड़ेगी तो वह कदापि उस से विवाह न करती.

आज उसे पश्चात्ताप हो रहा है कि उस ने पिताजी की पसंद के लड़के विक्रांत से शादी क्यों नहीं की, जो उस की हर फरमाइश पूरी करने के योग्य था, आभूषण, अच्छेअच्छे कपड़े, कार व ऐशोआराम की जिंदगी, सबकुछ होता उस के पास. एक विवेक है कि शादी के 2 वर्ष बाद भी कोई अच्छा सा महंगा गिफ्ट उसे ला कर नहीं दे सका. वह घृणा से मुंह बना लेती है जैसे विवेक का नाम अब उस के लिए कोई कड़वी वस्तु बन गया हो.

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