शहर में रहरह कर सिलसिलेवार बम धमाके हो रहे थे. चारों तरफ अफरातफरी का माहौल था. मैं टेलीविजन पर नजरें गड़ाए बैठा था. मुन्ना भी वहीं बैठा अपना होमवर्क कर रहा था. अचानक उस ने पूछा, ‘‘पापा, बहुत देर से कोई ब्लास्ट नहीं हुआ है, अगला ब्लास्ट कब होगा?’’
‘‘मैं कैसे बता सकता हूं बेटा?’’
‘‘क्यों पापा, आप इतना टेलीविजन जो देखते हैं.’’
‘‘बेटा, टेलीविजन देखने से ब्लास्ट का पता नहीं चलता.’’
‘‘तो फिर टेलीविजन पर ब्लास्ट कैसे दिखाते हैं?’’
‘‘ब्लास्ट होने पर टेलीविजन वाले वहां पहुंच जाते हैं और उस का फोटो खींचते हैं.’’
‘‘क्या टेलीविजन वाले कहीं भी पहुंच सकते हैं?’’ मुन्ना ने पूछा.
‘‘हां.’’
‘‘नहीं, पापा.’’
‘‘क्यों नहीं, बेटा?’’
‘‘कल हम सुपरमार्केट गए थे न.’’
‘‘हां बेटा, गए तो थे.’’
‘‘वहां कोने में एक भिखारी मर गया था न.’’
‘‘हां, हां.’’
‘‘वहां टेलीविजन वाले क्यों नहीं थे?’’
‘‘बेटा, टीवी वाले तभी पहुंचते हैं जब कोई बड़ा आदमी मरता है या बहुत सारे लोग एकसाथ मरते हैं.’’
तभी टेलीविजन पर प्रधानमंत्री आ गए. वह बम धमाकों के बारे में अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे.
‘‘देखो, यह बहुत बडे़ आदमी हैं,’’ मैं ने टेलीविजन की तरफ इशारा किया.
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‘‘यह कौन हैं, पापा?’’
‘‘यह हमारे पी.एम. यानी प्राइम मिनिस्टर हैं.’’
‘‘पर पापा, यह इतने दुबले हैं, बोलते भी इतना धीरेधीरे हैं, तो बड़े आदमी कैसे हुए?’’
‘‘देखो, मैं बताता हूं. तुम स्कूल में धीरे बोलते हो या जोर से?’’
‘‘धीरे से, पापा.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘जोर से बोलने पर मैडम बहुत डांटती हैं, पर पापा, पी.एम. को कौन मैडम डांटती है?’’
मैं कुछ बोलता तभी ब्रेकिंग न्यूज में एक और ब्लास्ट की खबर आई.
‘‘पापा, पापा, देखो, एक और ब्लास्ट हो गया,’’ मुन्ना उछल कर ताली बजाते हुए बोला.
‘‘मुन्ना बेटा, ऐसा नहीं करते. देखो, कितने लोग मर रहे हैं, सब को कितनी चोटें आई हैं. देखो, सब अंकलआंटी कैसे रो रहे हैं.’’
इतने में टेलीविजन पर गृहमंत्री का इंटरव्यू आने लगा.
‘‘पापा, सब लोग रो रहे हैं पर ये क्यों नहीं रो रहे हैं?’’ मुन्ना ने गृहमंत्री के बारे में पूछा.
‘‘इन्हें शरम आती है, बेटे.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘बेटा, तुम्हें याद है. तुम ने एक बार स्कूल में पैंट में शूशू कर दिया था?’’
‘‘हां.’’
‘‘तुम ने यह बात किसी से बताई थी?’’
‘‘बहुत शरम लगी थी न पापा, इसलिए घर आ कर सिर्फ मम्मी को बताई थी.’’
‘‘देखो, मंत्रीजी भी शरम के मारे सब के सामने रो नहीं पा रहे हैं.’’
‘‘तो फिर यह किस के पास जा कर रोते हैं?’’
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‘‘पी.एम. के पास, बेटे.’’
तभी एक और धमाके की खबर आई.
‘‘पापा, एक एपीसोड में कितने ब्लास्ट होते हैं?’’ मुन्ने ने पूछा.
‘‘बेटा, यह कोई सीरियल थोड़े ही न चल रहा है.’’
‘‘तो फिर टेलीविजन पर सीरियल ब्लास्ट क्यों लिखा है?’’
‘‘अपना होमवर्क मन लगा कर क्यों नहीं करता?’’ मैं ने मुन्ने को हलके से डांटा.
‘‘पापा, बताओ न…बम कौन फोड़ रहा है?’’
‘‘आतंकवादी अंकल, बेटा.’’
‘‘ये अंकल कहां रहते हैं?’’
‘‘क्यों?’’
‘‘दीवाली में उन्हीं से पटाखे खरीदने हैं.’’
‘‘बेटा, वह पटाखे नहीं, बम बनाते हैं.’’
‘‘वह इतना अच्छा बम बनाते हैं तो फिर पटाखा क्यों नहीं बनाते?’’
‘‘मुझे नहीं पता.’’
‘‘पापा, अंकल एक ही साथ इतने सारे बम क्यों फोड़ते हैं?’’
‘‘लोगों को डराने के लिए.’’
‘‘पापा, क्या उन से पुलिस अंकल भी डरते हैं?’’
‘‘बेटा, पुलिस तो बम से भी खतरनाक है.’’
‘‘कैसे, पापा?’’
‘‘बम तो एक ही बार फटता है पर पुलिस जिसे पकड़ती है उसे बारबार फोड़ती है.’’
‘‘क्या पुलिस अंकल भी बम फोड़ते हैं?’’
‘‘नहीं, अच्छा बताओ तुम्हें कौन सा चौकलेट पसंद है?’’
‘‘चुइंगम.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘चुइंगम बहुत बार चबाने से भी खत्म नहीं होता.’’
‘‘ठीक बताया तुम ने, पुलिस भी जिसे पकड़ती है उसे चुइंगम की तरह बहुत बार चबाती है.’’
मुन्ना ने अचानक मेरे हाथ से रिमोट छीन कर कार्टून चैनल लगा दिया. उस में टौम एंड जेरी के बीच निरंतर खींचतान जारी थी. टौम जेरी के पीछे भागता है पर जेरी बारबार चकमा दे कर निकल जाता.
‘‘वह देखो, पापा,’’ मुन्ना बोला, ‘‘बम वाले अंकल के पीछे पुलिस अंकल कैसे भाग रहे हैं,’’ इतना कह कर मुन्ना खिलखिला कर हंस रहा था.