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इस पर भाई ने गुस्से में कहा, ‘‘आप चाहे कुछ भी कहो, मारो, लेकिन यह एक कड़वी हकीकत है, जिसे आप झुठला नहीं सकतीं. वह वेश्याओं का अड्डा है. वहां सब तरह का धंधा होता है.’’

मां ने चीख कर कहा, ‘‘बस...बहन है वह मेरी. मां समान है. मैं उस के खिलाफ एक शब्द नहीं सुनना चाहूंगी.’’

इस पर भाई ने कहा, ‘‘इन 2 दिनों में मैं ने वहां जो देखा या मुझे बताया गया, तो क्या वह सब झूठ है?’’

‘‘हां, सब झूठ है. होगा सच औरों के लिए पर मेरी मां समान बहन के लिए नहीं. अगर आज के बाद उन के लिए एक भी शब्द बोला, तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

उन दोनों के बीच की कहासुनी सुन कर हम लोगों को बहुत डर लग रहा था. पर जैसे भाईर् भी जिद पर उतर आया था. उस ने कहा, ‘‘आप के लिए होगी मां. मेरे लिए तो...’’

मां बीच में ही बोल पड़ीं, ‘‘बस चुप रहो. मैं एक भी शब्द नहीं सुनना चाहती.’’

भाई गुस्से से वहां से चला गया. झगड़ा खत्म नहीं हो रहा था. मां ने कई बार उसे समझाना चाहा, लेकिन वह भी जिद पर अड़ा रहा. शायद उस के मानसपटल पर सबकुछ चिह्नित हो गया था. मां ने एक बार फिर उसे समझाने की नाकाम कोशिश की.

इस पर उस ने कहा, ‘‘चलो अब बात छोड़ो. अभी मेरे साथ वृंदावन चलो. मैं आप को उन सब लोगों से मिलवाता हूं, जिन्होंने मुझे ये सब बताया.’’

तभी अचानक मौसी का फोन आ गया. मां के सवाल करने पर मौसी रो पड़ीं और फिर बोलीं, ‘‘जब मुझे भेजने का निर्णय लिया गया था तब किसी ने भी नहीं रोका. तब कहां थे सब? यह निर्णय तो समाज का ही था. जितने मुंह उतनी बातें. एक अकेली औरत को क्या नहीं सहना पड़ता? सब का सामना करना आसान नहीं है?’’

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